Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
View full book text
________________
४२२ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख प्रा-सातण्णनेन्तप्पं ।। सातिशयचरितभरितं
भूतभवद्भाविभव्यजनसंसेव्य । सातगणनमल गुणसं.
भूतं जिनपदपयोरुहाकरहंसं ।। १६ ॥ . मल्लिकामाले । देवदेवन शान्तिनाथन गेहमं पोसतागि स
द्वोधिप...ोल्दु निर्मिसे तन्न कीर्ति दिगन्तमन्तिन्ने भव्यचकोरिचन्द्रमनेन्दु बन्देले वर्णिसल
कावणावर विचित्र चरित्रसातणनोप्पुव ।। १७ ॥ क । सातगणन वनिते गुण
......रत्न...दि भूतलदोल । नोन्तिलवे बोघ...वे - सातिस...ख्यातियिन्दे रजिसुतिर्पल ।। १८ ।। अा-दम्पतिगल गर्भदो__ लाद करेसेव-काम-सातङ्गल विद्यादिगुणरूपिनोल्पि
न्दादु.........धरित्रिगाव पडेदं ।। १६ ।। स्वस्ति श्रोमूनसङ्घ देसियगण पास्तकगच्छद काण्डकुन्दान्वय सिद्धेश्वर...मानानूनचारुचरित्रं श्रोमाघणन्दिसिद्धान्तचक्रवर्ति.........तप्पं ॥ . वृ ॥ स्वान्तभवप्रसृति... रसं ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662