Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 593
________________ ४०४ प्रासपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख हेसरुचङ्गियकोटेय नसहशभुजबलदे मुन्ने कोण्डरसुगलारसहायशूरशनिवा रसिद्धिगिरिदुर्गमल्लबल्लालनवाल ॥ १० ॥ एकाङ्गवीर शूद्रुक नाकारमनोजनय॑िसुरतरु तुरगानीक-वर-वत्स-राजन नेकपभगदत्तनल्ते बल्लालनृपं ।। ११ ।। गद्य ।। स्वस्ति समधिगतपञ्चमहाशब्द महामण्डलेश्वर। द्वारा वती पुरवराधीश्वर। तुलुव बलजलधि बडवानल । पाण्ड्यकुलदावानल। मण्डलिकबेण्टकार चालकटकसूरेकार। वासन्तिकादेवीलब्धवरप्रसाद । वितरणविनोदं। यादवकुलाम्बरा मणि । मण्डलिकमुकुटचूडामणि । असहाय शूर नृपगुणाधार । शनिवारसिद्धि । सद्धर्मबुद्धि। गिरिदुर्गमल। रिपुहृदयसेल्ल । चलदङ्कराम । रणरङ्गभीम । कदनप्रचण्ड । मलपरोलाण्ड नामादिप्रशस्तिसहितं काङ्गुनङ्गलितलकाडु नोलम्बवाडि बनवासेहानुङ्गलगोण्ड भुजबलवीरगङ्गप्रतापहोयसलबल्लालदेवईक्षिणमहीमण्डलम सद्धर्म परिपालिसुत्तुदोरसमुद्रद नेलेवीडिनाल्सुखसङ्कथाविनोदं राज्यं गेय्युत्तुमिरे तत्पाद पद्मोपजीवि ।। भरतागमतर्कव्या करणोपनिषत्पुराणनाटककाव्यो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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