Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 598
________________ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख ४०६ द्वीपियनोन्दनारी मुनि पोयसलयेन्दडे पोरदु गेल्दु दि ___ च्यापियशं नेगल्तेवडेदोगड पोयसलनेम्ब नामदिं ॥२॥ विनयादित्यनृपालन तनूजनेरेयङ्गभूपनातन पुत्रं । कनकाचलेोन्नतं वि ष्णुनृपाल...तनात्मजं ॥ ३॥ ......य सकल-म हीतलसाम्राज्य लक्ष्मिय......। श्वेतातपत्रनागे पु रातन नृपगर्गेणिसिद...बल्लालनृपं ॥४॥ एकत्र गुणिनस्सर्वे वादिराज त्वमेकतः । तवैव गौरवं तत्र तुलायामुन्नतिः कथं ॥५॥ सले सन्द योग्यतेयिन गलिसिद दुर्द्धरतपोविभूतिय पेम्पिं । कलियुगगणधररेम्बुदु जगवेल्लं मल्लिषेणमलधारिगलं ॥ ६ ॥ तमगाज्ञावशमादुदुन्नतमहीभृत्कोटि तम्मिन्दे बि___पमर्दत्ती-धरेगेय्दे तम्म मुखदोल्षतर्कवारासिविभ्रममापोशनमात्रमादुदेनलिं मातेनगस्त्यप्रभा वमुमकील्पडिसित्तु पेम्पिनेसकं श्रीपालयोगीन्द्रना॥ अवरप्रशिष्यरु श्री वादिराजदेवरु तम्म सल्यद कुम्बयन हल्लियलु तम्म गुरुगलिगे परोक्षविनयमागि परवादिमल्लजिनाल Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org

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