Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 573
________________ ३८४ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख नडेत्ति कवि सेटियु मडना बिट गर्द सलगे प्रोन्दु कोलग | [ इसमें कवि सेट्टि के कुछ भूमि के दान का उल्लेख है ] ४८८ (३६१ ) श्री वृषभस्वामि ( खण्डित मूर्त्ति के पादपीठ पर ) ४८ (४०० ) श्री मूलसङ्गद देशिगयद पोस्तक गच्छद श्री सुभचन्द्र सिद्धान्त देवर गुडि जfreeod दण्डनाय किति साइलि ...... ट देव प्रतिष्ठेय माडि जक्कियवे... . डर मग पयमगद स...... . चुनरेय दवाडिय.. . यलु सलगे बेद्दले कालगं ५ गोविन्द पडिय कोलग १ वेदले कण्डुग । Jain Education International ...... [ शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव की शिष्या जक्कियन्त्रे ने मूर्ति की स्थापना कराई और गोविन्द वाडि की उक्त भूमि अर्पण की। ] सुण्डहल्लिग्राम का लेख ४८० (४०७ ) . संवत्सरद मार्गशिर शु. १० ब्रहवार ...... न्महामण्डलाचाय्य रु नेमिचन्द्र पण्डितदेवरु पट्टणस्वामि नागदेव trisa are its ... न मग मार ...... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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