Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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३८६ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख
रोलु गण्डनुद्दण्डमण्डलिक शिरोगिरिवज्रदण्ड तलकाडुगोण्ड वीर- विष्णुवर्द्धनदेवनात नन्वयक्रम'
यदुमोदलादनेकराजा
सन्तानकदिं बलिक्के ॥
यदुकुल कुलाद्रिशिखर दोल
उदयसिद दुर्भिरीक्षतेजोहृत स
म्पदरातिराजमण्डल
नुदात्तगुणरत्नवार्द्ध विनयादित्यं ॥ २ ॥
आतन तनय सकल-म
हीतल साम्राज्य लक्ष्मियुं तनगेक
श्वेतातपत्रमागे पु
रातननृपरेणेगे वन्दन् एरेयङ्ग नृपं ।। ३ ।।
प्रा- विभुगं नेगर्द एचल
श्रीविष्णुवर्द्धन
राविक्रमनिधिगलनुजन् उदयादित्य ॥ ४ ॥ नेनेयल्पापचयं नोडिदोड भिमत संसिद्धि सद्भक्तियिन्द मनमोल्दाराधिसलकासुकृतदादव नेवेल्वुदे म्बन्ने गम्मु
न्निन पुण्यं वीररप्पा - नलनहुष रोलन्यूननादं जगत्पावनसत्यत्यागशौचाचरणपरिणत वोरविष्णुक्षितीश ॥५॥ * निर वद्यक्षत्रधर्मान्वितरेनिप महाक्षत्रियल्लकदाल्नास्वरेमुन्न' श्री दिलीपं दशरथतनयं कृष्णराज बलिक्का* यहाँ एक पंक्ति की कमी है
देविगमादर्त्तनूभवल्लाल
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