Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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३६८ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख
स्वामिय तीर्थक्के गौतम गणधर ।
आ-मुनियिं बलिकाद म
हा- महि मरेनि ..
श्रुतकेवलिगलु पलबरु
मतीतरादिम्बलिक्के तत्सन्ताना
11 80 11
नतिथं समन्तभद्र
"
व्रतिपर्त्तलेदरु समस्त विद्यानिधिगल ।। ११ ।। अवरिं बलिक्कम् एकसन्धि-सुमति-भट्टारकरवरिं बलिको वादी मसिंह श्रीमदकलङ्कदेवरवरिं वक्रग्रीवाचार्य्यवरि श्रीणन्याचार्य... यके राज्यवामुददि सिंहनन्द्याचार्यRafi श्रीपाल भट्टारकरवरिं श्रीकनकसेन वादिराज-देवRafi aarh ||
इतर व्या... लेके म... मनितुमिसु... प्रभा-संइतिथिन्दे वसुतिर्द्धनद्... अधिकमे
रिदद किञ्चित्कर किञ्चिन्न्यूनमेन्दु .
......नोप्पद......जगत्पूतमाचर्य्यभूतं ॥ १२ ॥ प्रवरं श्रीविजयर्भुवनविनूतरु शान्तिदेवर वरिं ......
वनद. न व्रतिपरु ||
आ-पुष्पसेन सिद्धान्तदेवरिं बलिक ।।
......
गतसर्वज्ञाभिमानं सुगतनपगताप्तप्रणादं कणाद
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कृत ......
. पादा
नतनाद' मर्त्य मात्रङ्गल नुडिगलोल... नेनसल्पर्व्वि लोको
.........
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