Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 589
________________ आसपास के ग्रामों के प्रवशिष्ट लेख विद्यगद्यपद्य-व चोविन्यासं निसर्गविजयविलासं ॥ १८॥ तमगाज्ञावशमादुदुनतमहीभृत्कोटि बि प्रपमर्दत्ती-धरेगेयदे तम्म मुखदोल्पट-तर्कवारासि-विभ्रममापोशनमात्रमादुदेनलीमातेनगस्त्य प्रभा वमुमं कील्पडिसित्तु पेम्पि...श्रीपाल-योगीन्द्रना॥१॥ वर्गत्यागद सूचित माग्र्गोपन्यासदलवु माऊललन्ताभग्गङ्गमरिदेनल्के नि रर्गलमादत्त...वीर्य बतियोल ॥ २० ।। इन्तु निरवद्यस्यावादभूषणरुं गणपोषणसमेतरुमागि वादीभसिंह वादिकोलाहल तार्किकचक्रवर्तियेम्ब निजान्वयनामङ्गलनोलकोण्डु अन्वयनिस्तारकरुं श्रीमदकलङ्क-मतावलम्बनरु षट तर्कषण्मुखरुमसारसंसारव्यापारपराङ्मुखरुमाद श्रीपाल विद्यदेवगर्गे।। शल्यत्रयरहितग्र्गी शल्यप्राममनुपमं कोट्टरिनृपहशल्यं सकलकलान्वय कल्य श्रीविष्णुभक्तियं तां मेरेदं ॥ २१ ॥ अन्ती-बसदिय खण्डस्फुटितजीर्णोद्धारकमी-सम्बन्धिय रिषिसमुदायदाहारदानकं कञ्चिगोण्ड वीरगङ्ग विष्णुवर्द्धन पोय्सलदेवंसकवर्ष१०४७ क्रोधिसंवत्सरद उत्तरायणसंक्रमणदलु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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