Book Title: Jain Shila Lekh Sangraha 01
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 579
________________ प्रासपास के ग्रामों के प्रवशिष्ट लेख [चन्नरायपट्टन १४६ ] लेख नं० १९४ के समान होयसल वंश के परिचय व वीरबल्लालदेव के प्रतापवर्णन के पश्चात् बल्लाल नरेश के दण्डाधिपति हुल्ल का परिचय है। हुल्ल यक्षराज और लोकाम्बिके के पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम पद्मलदेवी और पुत्र का नरसिंह सचिवाधीश था। हुल्ल जिनपदभक्त थे। इसके पश्चात् कहा गया है कि उक्त तिथि को गुणभद् के शिष्य नयकीर्ति के शिष्य भानुकीर्त व्रतीन्द्र को बल्लाल नरेश ने पार्श्व और चतुर्विशति तीर्थंकर के पूजन के हेतु मारुहल्लि ग्राम का दान दिया। इसके कुछ पश्चात् हुल्लप ने बल्लालदेव से बेक्क ग्राम का भी दान दिलवाया।] ४६२ हले बल्गोल में ध्वंस बस्ती के समीप एक पाषाण पर (शक सं० १०१५) भद्रमस्तु जिनशासनाय सम्पद्यतां प्रतिविधानहेतवे । अन्यवादिमदहस्तिमस्तकस्फाटनाय घटने पटीयसे ।। १ ।। स्वस्ति समस्तभुवनाश्रय-श्री-पृथ्वीवल्लभ महाराजाधिराज परमेश्वरपरमभट्टारक सत्याश्रयकुलतिलकं चालुक्याभरणं श्रामत् त्रिभुवन-मल्लदेवर राज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धिप्रवर्द्धमानमाचन्द्रार्क सलुत्तमिरे तत्पादपद्मोपजीवि। समधिगतपञ्चमहाशब्द महामण्डलेश्वर द्वारावतीपुरवराधीश्वर यादवकुलाम्बरा मणि Jain Education International For Private & Personal Use Only ____www.jainelibrary.org

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