Book Title: Jain Jagaran ke Agradut
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 34
________________ एक स्मृति पं० परमानन्द जैन शास्त्री लावा भागीरथजी वर्णी जैनसमाजके उन महापुरुषोमेसे थे, जिन्होंने 7ी आत्मकल्याणके साथ-साथ दूसरोके कल्याणको उत्कट भावनाको मूर्त रूप दिया है। वावाजी जैसे जैनधर्मके दृढश्रद्धानी, कप्टसहिष्णु और आदर्श त्यागी ससारमे विरले ही होते है । आपकी कपाय बहुत ही मन्द थी। आपने जैनधर्मको धारणकर उसे जिस साहस एव आत्मविश्वासके साथ पालन किया है, वह सुवर्णाक्षरोमे अकित करने योग्य है। आपने अपने उपदेशो और चरित्रवलसे सैकडो जाटोको जनधर्ममै दीक्षित किया है-- उन्हे जैनधर्मका प्रेमी और दृढश्रद्धानी बनाया है, और उनके आचारविचार-सम्बन्धी कार्योंमे भारी मुधार किया है। आपके जाट गिप्योमेसे शेरसिंह जाटका नाम खास तौरसे उल्लेखनीय है, जो बावाजीके बड़े भवत है। नगला जिला मेरठके रहनेवाले है और जिन्होंने अपनी प्राय. सारी सम्पत्ति जैन-मन्दिरके निर्माण कार्यमे लगा दी है। इसके सिवाय खतौली और आसपासके दस्सा भाइयोको जनधर्ममें स्थित रखना आपका ही काम था। आपने उनके धर्मसाधनार्थ जैनमन्दिरका निर्माण भी कराया है। आपके जीवनकी सबसे बडी विशेषता यह थी कि आप अपने विरोधी पर भी सदा समदृष्टि रखते थे और विरोधके अवसर उपस्थित होने पर माव्यस्थ्य वृत्तिका अवलम्बन लिया करते थे और किसी कार्यके असफल होनेपर कभी भी विषाद या खेद नही करते थे। आपको भवितव्यताकी अलध्य शक्ति पर दृढ विश्वास था। आपके दुवले-पतले शरीरमे केवल अस्थियोका पजर ही अवशिष्ट था, फिर भी अन्त समयमे आपकी मानसिक सहिष्णुता और नैतिक साहसमे कोई कमी नही हुई थी। त्याग और तपस्या आपके जीवनका मुख्य ध्येय था, जो विविध प्रकारके सकटोविपत्तियोमे भी आपके विवेकको सदा जाग्रत (जागरूक) रखता था। खेद है कि वह आदर्श त्यागी आज अपने भौतिक शरीरमे नही है, उनका ईसरीमें २६ जनवरी सन् ४२ को समाधिमरणपूर्वक स्वर्गवास हो गया

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