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बाबू सूरजभानु वकील
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है, तो आँधी ही उसे चारो ओर फैलाकर कृतार्थं होती है, दोनोमें अभिन्न मित्रता है । बा० सूरजभान एक ज्वालाकी तरह, अपनी तरुणाईकी मदभरी अँगडाइयोमें, समाजके अँधेरे आँगनमें उभरे। विरोधकी आँधियाँ उठी, घहराई, पर वे दीपक न थे कि बुझ जाते, अज्ञानके दारुण दर्पको दहते, चारो ओर फैल गये । भारी लक्कडके वोभसे दव, छोटी चिनगारी बुझ जाती है, पर होलीकी लपट, इन्ही लक्कडोकी सीढियोपरने चढ आसमानके गले लगती है । पता नही, जव वावूजी जन्मे, किस ज्योतिपीने उनकी भावीका लेख पढा और उस सुकुमार शिशुको वह जलता नाम दिया - सूर्यकी तरह वे अँधेरेमें उगे और उसे छिन्न-भिन्न कर आसमान में आ चमके । इन सब परिस्थितियोका हम अध्ययन न करें, अपने मनमें विरोधकी आँधियोके झकोरोका वल न तोल पायें, तो देवताकी तरह हम बाबू सूरजभानकी मूर्तिपूजा भले ही कर लें, उनके कार्योंका महत्त्व नही समझ सकते । तब उनके कार्य हमारे उत्सव गीतो स्वर भले ही भरें, हमारे अँधेरे अन्तरका आलोक और टूटे घुटनोका बल नही हो पाते । ऐसा हम कब चाहेंगे ?.
तव आजकी तरह हरेक दफ्तरपर 'नो वैकेंसी' की पाटी नही टॅगी थी, वे चाहते तो आसानीसे डिप्टी कलक्टर हो सकते थे, पर नौकरी उन्हें अभीष्ट न थी, वे वकील वने और थोडे ही दिनोमें देववन्दके सीनियर वकील हो गये | वकीलको पूँजी है वाचालता और सफलताकी कसौटी है झूठपर सचकी सुनहरी पालिश करनेकी क्षमता। और बाबू सूरजभान एक सफल वकील, मूक साधना जिनकी रुचि और सत्य जिनकी आत्माका सम्वल ! कावेमें कुफ हो, न हो, यहाँ मयखानेसे एक पैगम्बर जरूर निकला ।
बग्वू सूरजभान वकील, अपने मुवक्कलोके मुकदमे तो उन्होने थोडे ही दिन लडे -- वे कचहरियाँ उनके लायक ही न थी -पर वकील वे जीवन भर रहे, आज ७५ वर्षके वुढापेमें भी वे वकील है और रातदिन मुकदमे लडते हैं, न्यायकी अदालतमें, खोजको हाईकोर्टमें, असत्यके विरुद्ध सत्यके मुकदमे । सस्कृतिकी सम्पदापर कुरीतियोके कन्जेके