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श्री जुनलाल सेठी
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आत्मोत्सर्गी चौकडियाँ मेरे सामने इस असमर्थ दशामें भी चिर आराध्य पदपर आसीन है; प्रात. स्मरणीय आदर्श पण्डितराज गोपालदासजी वरैया, दानवीर सेठ माणिकचन्द्र और महिला - ज्योति मगन वहन आदिके नेतृत्वauseat मै अगीभूत पुजारी अद्यावधि हूँ और पर्देकी ओटमें उन सबकी सत्तावाटिकाका निरन्तर भोगी भी हूँ और योगी भी । कौन किधर कहाँसे, यहाँ क्या और वहाँ क्या इत्यादि प्रत्येक प्रश्नके उत्तरमे मेरे लिए तो उक्त दिव्य महापुरुषोकी आत्माएँ ही अचूक परीक्षा - कसौटीका काम
जीवन-मरणके वैसे ही सन्धिस्थलसे अपने विप्लवके साथियोंके पास जो पत्र भेजा था, उसका सार कुछ ऐसा था--' - "भाई मरनेसे डरे नही, और जीवनकी भी कोई साध नहीं है; भगवान् जब जहाँ जैसी अवस्था में रक्खेंगे, वैसी ही अवस्थामें सन्तुष्ट रहेंगे ।" इन दो युवकोंमेंसे एकका नाम था मोतीचन्द और दूसरेका नाम था माणिकचन्द्र या जयचन्द्र । इन सभी विप्लवियोके मनके तार ऐसे ऊँचे सुरमें बँधे थे जो प्रायः साधु और फ़क़ीरोंके बीच ही पाया जाता है ।"
२ - प्रतापसिंह वीर - केसरी ठाकुर केसरीसिंहके सुपुत्र और सेठीजीके प्रिय शिष्य थे । सेठजीके आदेश से ये उस समयके सर्वोच्च क्रान्तिकारी नेता स्वर्गीय रासविहारी बोसके सम्पर्क में रहते थे । इनके जाँबाज़ कारनामे और आत्मोत्सर्गकी वीरगाथा 'वाद' वग़ैरहमें प्रकाशित हो चुकी हैं।
३ - मदनमोहन मथुरासे पढ़ने गये थे, इनके पिता सर्राफा करते थे । सम्पन्न घरानेके थे । सम्भवतः इनकी मृत्यु अचानक ही हो गई थी । इनके छोटे भाई भगवान्दीन चौरासीमें सन् १४-१५ में मेरे साथ पढते रहे है, परन्तु मदनमोहनके सम्बन्धमें कोई बात नही हुई । बाल्यावस्थाके कारण इस तरहकी बातें करनेका उन दिनों शऊर ही कब था ?
४ - प्रकाशचन्द सेठीजीके इकलौते पुत्र थे । सेठीजी की नज़रबन्दीके समय यह बालक थे । उनकी अनुपस्थितिमें अपने-परायोंके व्यवहार