Book Title: Jain Jagaran ke Agradut
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 144
________________ ५३८ जैन-जागरणके अग्रदूत अपनी पुत्री शान्तिका विवाह किया तो इस धूमधामसे कि वारात देखनेके लिए आसपासके गाँवसे इतने आदमी आये कि उस दिन प्रत्येक घरमे २-२, ४-४ अतिथि ललितपुरमें थे। प्रत्येक नागरिकके घर मिठाई वायने' के रूपमें पहुंचाई गई। कोई भी सामाजिक त्योहार या पर्व ऐसा नहीं होता था, जिसपर सेठजीकी ओरसे समस्त समाजकी 'पगत' नही की जाती हो । जिस नगर या गाँवकी यात्रा की, वही गरीवो और विद्यार्थियो को पुरस्कार वितरित किये । कोई भी याचक चाहे वह चन्दा लेनेवाला हो, चाहे सामान्य भिक्षुक, कभी उनके दरवाजेसे खाली हाथ वापिस नहीं गया। सेठ पन्नालाल टडया, उनके सुयोग्य भतीजे थे। पुत्र एक ही हैहुकमचन्द टडैया, बिल्कुल वही रूपरग; आज भी है । मथुरादासजी 'की न्याय-प्रियता, उदारता, स्वाभिमान-भावना और व्यवहार-कौशलसौभाग्यवश, स्वभावकी सभी विशिष्टताएँ पन्नालालजीको वशोत्तराधिकारमें मिली थी। सेठ मथुरादासजी द्वारा स्थापित बहुत-सी परम्पराएं सेठ पन्नालालजीने बहुत दिनो तक यथारूप प्रचलित रखी। कालवश आज सेठ पन्नालालजी भी स्वर्गस्थ है । सेठ मथुरादासजी और पन्नालालजीकी महानताके अवशेष, यद्यपि उनके वर्तमान वशज अभिनन्दनकुमारजी टडैया तथा जिनेश्वरदासजी और हुकमचन्दजी द्वारा आज भी कुछकुछ सुरक्षित है, किन्तु निश्चय ही तुलनाकी दृष्टिसे वे पासग भी नहीं है, किन्तु जहाँ तक मथुरादासजी तथा पन्नालालजी द्वारा अपनाई गई विशेषताओसे तुलनाका प्रश्न है, वही तक यह वात घटित है । नगरके अन्यान्य परिवारोकी तुलनामे तो आज भी इसी वशका पलड़ा भारी ठहरेगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। सेठ मथुरादासजीका जन्म लगभग स० १९२९-३० में और मृत्यु सं० १९७५ में हुई। धन्य है उनके पिता सेठ मुन्नालालजीको, जिन्होने ऐसे पुत्र-रत्नको प्राप्त किया था। १५ जुलाई १९५१

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