Book Title: Jain Jagaran ke Agradut
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 148
________________ जैन-जागरणके अग्रदूत में उनके अहसानोसे कितना दवा हुआ हूँ ? आज एक पुत्र अपने पिताको उनकी मौजूदगीमें किन शब्दोमें श्रद्धाजलि दे, समझ नहीं पा रहा हूँ। मुझे सकोच है, तो इतना ही कि हम उनकी उच्चता और गभीरताको पा न सके, उनके वारिस होकर भी। आज जब अपने भावोको उनके समक्ष प्रकट करनेका सुअवसर मिला है, तो मैं तो परमेश्वरसे यही प्रार्थना करूंगा कि परिवारके लिए, समन्न जैन समाज एवं व्यापारिक समाजके लिए वे शतायु हो और हम रावपर उनकी सरपरस्ती बनी रहे। ___ आज सेठ हुकमचन्दजी हमारे बीच मौजूद है। अत उनके पसर व्यक्तित्वका महत्त्व हम समझ नहीं पा रहे है । मेरी मान्यता है कि भारतके व्यावसायिक एव औद्योगिक गगनमण्डलमें फिर कभी सेठ साहब-नसा प्रतापी सितारा प्रकट होना अमभव नही. तो अत्यन्त कठिन अवश्य है। सो भगवान् उन्हें चिरायु करें, यही मेरी पुन पुन प्रार्थना है । हुकुमचन्द-अभिनन्दन-ग्रन्थ मई, १९५१ + - +

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