Book Title: Jain Jagaran ke Agradut
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 136
________________ खेड मथुरादास टडया श्री 'तन्मय' बुखारिया . .. .. 'आपका नाम ?' 'निवास स्थान " 'ललितपुर । 'ललितपुर ? कौन-सा ललितपुर ?' 'ललितपुर, जिला झाँसी।' 'जिला आ आ झाँसी ई ..ई, सेठ मथुरादासका ललितपुर ?' अब मेरी बारी थी। साश्चर्य मैने उत्तर दिया-'सेठ मथुरादास ? सेठ मथुरादासको तो मैं जानता नही । आप शायद किसी दूसरे ललितपुरकी बात कह रहे है " ___'खैर, होगा। आप जाइए। कमरा न० ११ खाली है, उसमें सामान रख लीजिए।' उस समय मेरी आयु लगभग १६-१७ वर्षकी रही होगी। वात इन्दौरकी एक धर्मशालाकी है। कमरा प्राप्त करने जव मै व्यवस्थापक के पास गया, उस समय जो बातें हुई, वहीं ऊपर अकित है । उस समय मेरा ज्ञान, अनुभव और परिचय आदि इतना अत्यल्प था कि यदि मै मेट मथुरादासको नही जान सका तो यह उचित तथा स्वाभाविक ही था। किन्तु, 'नही जानता', उस समय यह मैने कह तो दिया, पर मेरे सहज जिज्ञासु और कुतूहलप्रिय हृदयमे, सेठ मथुरादासजीके प्रति परिचयेच्छा अवश्य ही अंकुरित होकर रह गई और उसीका परिणाम है यह लेख । आखिर कौन है ये सेठ मथुरादास, जिनके नामसे ही ललितपुरको लोग जानने लगे है, इस कौतूहलने मुझे गान्त नही रहने दिया और इसीलिए

Loading...

Page Navigation
1 ... 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154