Book Title: Jain Jagaran ke Agradut
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Bharatiya Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 140
________________ ५३४ जैन-जागरण के अग्रदूत है, उनके एक प्रकारसे दाहिने हाथ ही थे । ललितपुर -समाजमे, चौधरी जी अपनी पचायत चातुरीके लिए विख्यात है । व्यवहार-कौशलकी यह देन --- उन्होने सेठ मथुरादासजीके चरणोमें बैठकर ही प्राप्त की थीइसको वे आज भी गर्व और कृतज्ञतासे स्वीकार करते है, और इन पक्तियो का लेखक चौधरीजीके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता है कि सेठजीके सम्बन्ध मे इतनी अधिक और प्रामाणिक सामग्री उन्होने उसको दी। सेठजी, एक बार, एक विवाहमे सम्मिलित होने मुंगावली गये । चौधरी पलटूराम भी साथ थे । सहसा न जाने क्या सूझी कि चौधरीजीको बुलाकर बोले- 'अरे, पल्टुआ 1 ( चौधरीजीके प्रति यही उनका स्नेहसिक्त सम्बोधन था ) सुना है, यहाँ जज साहब रहते है ? उनसे मिलना चाहिए ।' चौधरीजीने उत्तर दिया--'अच्छी बात है, शामको चले चले ।' इस सुझावपर चौधरीजीको उन्होने इतनी गालियाँ दी कि चौधरी सहमकर रह गये । बोले, 'अवे पल्टुआ ! इतना बडा हो गया, पर तुझमें इतनी अकल नही आई ? में मिलने जाऊँगा ? अबे, वह कामकर कि जज साहब खुद अपने डेरेपर मिलने आये ।' चौधरीजीमे, चातुर्य जन्मजात रहा है, तत्काल बोले--- ठीक है, दीजिये मुझे तीन सौ रुपये - ऐसा ही होगा ।' रुपयोकी व्यवस्था हो गई। बाज़ार जाकर चौधरीजीने दो-चार स्थानीय पचोको साथ लिया । सस्तेका जमाना था । बहुत-सी धोतियाँ, कम्बल, कापियाँ, किताबें, पेंसिले, दावाते आदि खरीदी । स्थानीय पाठशालाओके विद्यार्थियो को सूचित किया । गाँवमे जो गरीब थे, उनको ख़बर कराई । सामानको एक सार्वजनिक स्थानपर व्यवस्थित किया । पचोंको लेकर जज साहवके बँगलेपर पहुँचे । निवेदन किया कि आज सायकाल, स्थानीय विद्यार्थियो और गरीबोको, सेठ मथुरादासजी ललितपुरवालोकी ओरसे पुरस्कार वितरित किये जायेंगे, सेठजीकी इच्छा है कि यह कार्य आपके कर-कमलो से सम्पन्न हो । जज्र साहबने प्रस्तावको सहर्ष स्वीकृत किया । कार्य हुआ । सेठजीकी उदारतासे जज साहब इतने प्रभावित हुए कि दूसरे दिन उनके

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154