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श्रात्मार्थी श्री कानजी महाराज
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मानो तो भी इसी प्रकार है, न मानो तो भी इसी प्रकार है ।'
समयमारकी जो स्तुति ह पदी जाती है, वह भक्तिरस से ओतप्रोत है । यद्यपि वह गुजरानीमे है, किन्तु गुजराती न जाननेवाले पाठक भी उसका आगय सरलताने नमक सकते है-स्तुति उस प्रकार हैसीमन्धर मुखथी फूलढां भरे, एनी कुन्दकुन्द ग्रंथी माल रे,
जिनजी नी वाणी भली रे ।
वाणी भली मन लागे रली, जेमां समयसार सिरताज रे,
जिनजी नी वाणी भली रे "सीमन्धर० ॥ १॥ गुंग्या पाहुड ने गूंथ्यं पंचास्ति, jj प्रवचनसार रे,
जिनजी नी वाणी भली रे ।
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गृल्यूं नियममार, ग्रंथ्यं रयणसार, गंध्यं समयनो सार रे,
जिनजी नी वाणी भली रेसीमन्धर० ॥२॥ स्याद्वाद केरी' सुवासे भरे लो, जिनजीनो ऊँकार नाट ३,
जिनजी नी वाणी भली रे ।
बंदु जिनेश्वर बंदु हुं कुन्दकुन्द, बंदु ॐकार नाद रे,
जिनजी नी वाणी भली रे "सीमन्धर० ॥३॥
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हैडे" हजो मारा ध्याने
मारा भावे हजो, हजो जिनवाण रे,
जिनजी नी वाणी भली रे ।
१ मुखसे । २ इसकी । ३ की । ४ जिनवाणी हमारे हृदयमें होवे, जिनवाणी हमारे भावोंमें होवे, जिनवाणी हमारे ध्यानमें होवे ।
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