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जैन-जागरणके अग्रदूत सोनगढका जिन-मन्दिर तथा सीमन्धर स्वामीके समवसरणको रचना दर्शनीय है । कुन्दकुन्द स्वामीके विषयमे ऐसा उल्लेख मिलता है कि उन्होने विदेहक्षेत्रमे जाकर सीमन्वर स्वामीके मुखसे दिव्यध्वनिका श्रवण किया था। दर्शनसारमे लिखा है
"जइ पउमणंदिणाहो सीमंधरसामिदिवणाणेण ।
रण विवोहइ तो समणा कहं सुमग्गं पयाणंति ॥' अर्थात्-'यदि सीमन्धर स्वामीसे प्राप्त दिव्य ज्ञानसे श्री पद्मनन्दि स्वामी, (कन्दकुन्द) ने बोध न पाया होता तो मुनिजन सच्चे मार्गको कैसे जानते ?'
कानजी स्वामीकी उक्त उल्लखपर दृढ आस्था है। अत उनकी भावनाके अनुसार सोनगढमें सीमन्धर स्वामीके समवसरणकी रचना रचकर उसने कुन्दकन्द स्वामीको भगवान्का उपदेश वण करते हुए दिखलाया है। यह रचना दर्शनीय है।
सोनगढका स्वाध्याय-मन्दिर भी दर्शनीय है। यह एक विशाल भवन है, जिसमे कई हजार भाई-बहन एक साथ वैश्कर महाराजका उपदेश श्रवण कर सकते है । धर्मोपदेशका समय निश्चित है, सुबह ८ से ६ तक और सन्ध्याको ३ से ४ तक । सव श्रोता ठीक समय पर आकर बैठ जाते है और ठीक समयसे उपदेश प्रारम्भ हो जाता है और ठीक समयपर बन्द होता है। समय-पालनकी विशेषता पर वरावर ध्यान दिया जाता है। सन्ध्याको उपदेशके पश्चात् सव भाई-बहन जिन-मन्दिरमे जाते है और वहाँ आधा घटा सामूहिक भक्ति की जाती है।
कानजी महाराजको समयसार और कुन्दकुन्दके प्रति अतिशय भक्ति है। वे समयसारको उत्तमोत्तम ग्रन्थ गिनते है। उनका कहना है कि 'समयसारकी प्रत्येक गाथा मोक्ष देनेवाली है । भगवान् कुन्दकुन्दका हमारे ऊपर बहुत भारी उपकार है। हम उनके दासानुदास है । भगवान् कुन्दकुन्द महाविदेहमें विद्यमान तीर्थकर सीमन्वर स्वामीके पास गये थे। कल्पना करना मत, इनकार करना मत, यह वात इसी प्रकार है,