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मथुरा जम्बू स्वामी का निर्वारण-स्थल नहीं है।
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के निर्वाण का उल्लेख किया गया है । परन्तु जम्बू वन किस देश का वन है यह पद्य पर से कुछ भी फलित नहीं होता। मालूम होता है, जम्बू स्वामी ने जिस वन में या स्थान में ध्यानाग्नि द्वारा अवशिष्ट प्रघाति कर्मों को भस्म कर कृतकृत्यता प्राप्त की, सम्भवतः उसी वन को जम्बू वन नाम से उल्लिखित करना विवक्षित रहा है। पर यह विचारणीय है कि उक्त स्थान किस नगर या ग्राम के पास है और उसका मथुरा से क्या सम्बन्ध है ? इस सम्बन्ध में कोई महत्त्व के प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं जो मथुरा को सिद्धक्षेत्र सिद्ध कर सकें ।
मथुरा
मथुरा के समीप ही चौरासी नाम का स्थान है, जहाँ पर एक विशाल जैन मन्दिर बना हुआ है। जिसे के सेठ मनीराम ने बनवाया था, और उसमें इस समय अजितनाथ तीर्थकर की ग्वालियर में प्रतिष्ठित मनोज्ञ मूर्ति परन्तु अन्वेषण करने पर भी जम्बू विराजमान है । इसी स्थान को जम्बू स्वामी का निर्वाण स्थान कहा जाता स्वामी के चौरासी पर निर्वाण प्राप्त करने का कोई प्रामाणिक उल्लेख अभी तक मेरे देखने में नहीं आया है । मालूम नहीं, इस कल्पना का आधार क्या है ?
डा० हीरालाल जी एम० ए० डी० लिट् ने अपनी पुस्तक 'जैन इतिहास की पूर्व पीठिका और हमारा अभ्युत्थान' के पृ० ८० में संयुक्त प्रान्त का परिचय कराते हुए जम्बू स्वामी की निर्वाण भूमि उक्त चौरासी स्थान पर बतलाई है । उनकी इस मान्यता का कारण भी प्रचलित मान्यता जान पड़ती है क्योंकि उसमें किसी प्रमाण बिशेष का उल्लेख नहीं है ।
मथुरा जैनियों का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थान है । कंकाली टीले के उत्खनन में जो महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध हुई है, उससे उसकी महत्ता का स्पष्ट बोध होता है। इसमें किसी को विवाद नहीं है किन्तु वह जम्बू स्वामी का निर्वाण क्षेत्र है यह कोरी निराधार कल्पना है ।
दूसरे विद्युतचर और उनके साथियों का भी देवलोक प्राप्ति का स्थल नहीं हैं। क्योंकि विद्युतचर और उनके ५०० साथी मुनियों पर होने वाले उपसर्ग का स्थल ताम्रलिप्ति बतलाया गया है, जो जैन संस्कृति और व्यापार का महत्वपूर्ण केन्द्र था । जब ताम्रलिप्ति नगरी समुद्र में विलीन हो गई तब नगरी के विनाश के साथ जैनियों की साँस्कृतिक सम्पत्ति भी विनष्ट हो गई। इस कारण उनकी स्मृति के लिये मथुरा को चुना गया हो, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं ।
जम्बूस्वामी चरित के कर्ता कवि राजमल्ल ( १६३२) ने स्वयं जम्बूस्वामी का निर्वाण विपुलाचल से माना है । वीर कवि (१०७६) ने भी विपुलाचल से ही उनके निर्वाण प्राप्त करने का उल्लेख किया है । इन उल्लेखों के प्रकाश में मथुरा को जम्बू स्वामी की निर्वाण भूमि नहीं माना जा सकता । हाँ, अन्य कोई प्राचीन प्रमाण उपलब्ध हो तो उस पर विचार किया जा सकता है। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में मथुरा जम्बू स्वामी का निर्वाण क्षेत्र माना जाता है ।