Book Title: Jain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Rameshchandra Jain Motarwale Delhi

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Page 545
________________ १५वीं, १६वीं, १७वीं और १८वीं शताब्दी के आचार्य भट्टारक और कवि प्रदान की थी। इनके सिवाय, ब्रह्मनेमिदत्त ने अपने आराधना कथा कोश, श्रीपाल चरित, सुदर्शन चरित, रात्रिभोजन त्याग कथा और नेमिनाथ पुराण आदि ग्रन्थों में श्रुतसागर का प्रादरपूर्वक स्मरण किया हैं। इन ग्रन्थों में आराधना कथा कोश सं० १५७५ के लगभग की रचना है, और श्रीपाल चरित सं० १५८५ में रचा गया है। शेष रचनाएं इसी समय के मध्य की या आसपास के समय की जान पड़ती है। रचनाएँ ब्रह्म श्रुतसागर की निम्न रचनाएं उपलब्ध हैं-१. यशस्तिलक चन्द्रिका २. तत्त्वार्थ वृत्ति ३. तत्त्व त्रय प्रकाशिका. ४. जिन सहस्र नाम टीका ५. महाभिषेक टीका ६. पट् पाहुडरीका ७. सिद्धभक्ति टोका ८. सिद्ध चक्राष्टक टीका, ६ व्रत कथा कोश-ज्येष्ठ जिनवर कथा, रविव्रतकथा, सात परम स्थान कथा, मुकुट सप्तमी कथा, अक्षयनिधि कथा, षोडश कारण कथा, मेघमालाव्रत कथा, चन्दन पष्ठी कथा, लब्धिविधान कथा, पुरन्दर विधान कथा दशलाक्षणी व्रत कथा, पुष्पांजलि व्रत कथा, प्राकाश पचमी कथा, मुक्तावलि व्रत कथा, निर्दु ख सप्तमी कथा, सुगंधदशमी कथा, थावण द्वादशी कथा, रन्नत्रय व्रत कथा, अनन्त व्रत कथा, अशोक रोहिणी कथा, तपो लक्षण पक्ति कथा मेरु पंक्ति कथा, विमान पक्ति कथा और पल्ल विधान कथा । इन सब कथामों के संग्रह का नाम व्रत कथा काष है। यद्यपि इन कथाओं में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के अनुरोध एव उपदेशादि द्वारा रचे जाने का स्पष्ट उल्लेख निहित है। १० श्रीपाल चरित ११. यशोधर चरित १२. औदार्य चिन्तामणि (प्राकृत स्वोपज्ञवृत्ति युक्त व्याकरण) १३. श्रत स्कन्ध पूजा १४. श्रीपार्श्वनाथ स्तोत्रम् १५. शान्तिनाथ स्तुतिः । पार्श्वनाथ स्तोत्र १५ पद्यात्मक है, जा अनेकान्त वर्ष १२ किरण ८ पृ० २३६ पर प्रकाशित हुआ है । यह जीरा पल्लिपुर' में प्रतिष्ठित पाश्वनाथ जिन का स्तवन है। इस स्तवन में पार्श्वनाथ जिन का पूरा जीवन अकित है। इसमें पार्श्वनाथ के पिता का नाम विश्वसन बतलाया हे, जा काशी (वाराणसी) के राजा थे। वमिष्टो विश्वसेनः शतमख रुचितः काशि वाराणसीशः। प्राप्तज्यो मेरु शृगे मरकत मणि रुक्पार्श्वनाथो जिनेन्द्रः । तस्याभूस्त्वं तनूजः शत शरद् चितस्वापुरानंदहेतु *व्यानां भाव्यमानो भवचकितधियां धर्मधुर्यो धरित्र्यां ॥" शान्तिनाथ स्तुतिः में नौ पद्य हैं । यह स्तवन भी अनेकान्त वर्ष १२ किरण ६ पृ० २५१ में मुद्रित हुआ है । ब्रह्म श्रुतसागर की कई रचनाएँ अभी अप्रकाशित हैं जिनके प्रकाशन की व्यवस्था होनी चाहिए। ब्रह्म नेमिदत्त यह मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कार गण के विद्वान मल्लिभूषण के शिष्य थे। इनके दीक्षा गुरु भ० विद्यानन्दि थे, जो सूरत गही के संस्थापक भ० देवेन्द्रकीर्ति के शिष्य थे। इन्ही विद्यानन्दि के पट्ट पर प्रतिष्ठित होने वाले मल्लिभूषण गुरु थे, जो सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्ररूप रत्नत्रय से सुशोभित थे। और विद्यानिन्द रूप पट्ट को प्रफुल्लित करने वाले भास्कर थे' । मल्लिभूषण के दूसरे शिष्य भ० सिंहनन्दिगुरु थे, जो मालवा की गद्दी के भट्टारक थे। इनकी प्रार्थना (मालवादेश भट्टारक श्री सिहनन्दि प्रार्थना) से श्रुतसागर ने यशस्तिलक चम्पू की 'चन्द्रिको' नाम की टीका लिखी थी और ब्रह्मनेमिदत्त ने नेमिनाथ पुराण भी मल्लिभूषणके उपदेश से बनाया था और वह उन्हीं के नामांकित किया गया था। ब्रह्म नेमिदत्त के साथ मूर्ति लेख में ब्रह्म महेन्द्रदत्त नाम का और उल्लेख मिलता है । जो नेमिदत्त के सहपाठी हो सकते हैं । ब्रह्मनेमिदत्त संस्कृत हिन्दी और गुजराती भाषा के विद्वान थे। आपकी संस्कृत भाषा को १० १. जीरा पल्लिपुर प्रकृष्ट महियन मौकुन्द सेवानिधे। -पाश्र्वनाथ स्तवन

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