Book Title: Jain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Rameshchandra Jain Motarwale Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 574
________________ ५४० जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ ज्ञातीय अनन्तमती ने कराई थी। श्रीभूषण उक्त पट्ट पर कब प्रतिष्ठित हए इसका स्पष्ट निर्देश नहीं मिलता। किन्तु पाण्डव पुराण के सं० १६५७ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि वे उक्त पट्ट पर प्रतिष्ठित हो चके थे। सं० १६३४ में इनका श्वेताम्बरों से बाद हुमा था जिससे उन्हें देश त्याग करना पड़ा था। इन्होंने बादिचन्द्र को भी बाद में पराजित किया था। श्रीभषण के शिष्य भ० चन्द्रकीति ने अपने गुरु श्रीभूषण को सच्चारित्र तपोनिधि, विद्वानों के अभिमान शिखर को तोडने वाला वज, और स्याद्वादविद्याचरण बतलाया है। यह प्रतिष्ठाचार्य भी थे । इन्होंने सं० १६३६ में पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापित की थी। और सं० १६६० में पद्मावती की मूर्ति की प्रतिष्ठा की थी। तत्पट्टाम्बर भूषणकतरिणः स्याद्वादविद्याचिणो।१। विद्वद्वन्द कुलाभिमानशिखरी प्रध्वंसतीवाशनिः। सच्चारित्र तपोनिधिधर्मनिवरो विद्वत्सुशिष्य बजः, श्री श्रीभूषण सरिराट् विजयेत् श्री काष्ठा संघाग्रणी ॥७२ आपकी निम्न कृतियाँ उपलब्ध हैं -पाण्डव पुराण, शान्तिनाथ पुराण, हरिवश पुराण, अनन्तव्रत पूजा, ज्येष्ठ जिनवर व्रतोद्यापन चतविशति तीर्थकर पूजा, द्वादशाग पूजा । पाण्डव पुराण-इस में पाण्डवों का चरित अंकित गया है, जिसकी श्लोक संख्या छह हजार सात सौ बतलाई गई है। कवि ने इस ग्रन्थ को वि० सम्वत १६५७, पूस महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया रविवार के दिन पर्ण किया है श्री विक्रमार्क समयागत षोडशार्के सत्सुंदराकृति वरे शुभवत्सरे वै। वर्षे कृतं सुखकरं सुपुराणमेतत् पचाशदुत्तर सुसप्त युते (१६५७) वरेण्ये ।। पौस मासे तथा शुक्ले नक्षत्रे तृतियादिने ।११० रविवारे शुभेयोगे चरितं निर्मितं मया ॥१११ -इसमें भगवान शान्तिनाथ का जीवन परिचय अंकित है जिसकी पद्य संख्या ४०२५ बतलाई गई है। प्रशस्ति में कवि ने अपनी पट्ट परम्परा के भट्टारकों का उल्लेख किया है। कवि ने इस ग्रन्थ को सं० १६५६ में मगशिर के महीने की त्रयोदशी को सौजित्र में नेमिनाथ के समीप पूरा किया है संवत्सरे षोडशनामधेये एकोनशत्पष्ठियुते (१६५६) वरेण्ये । श्री मार्ग शीर्षे रचित मयाहि शास्त्रं च वष विमल विशुद्धं ॥४६२ त्रयोदशी सद्दिवसे विशुद्ध वारे गुरौ शान्ति जिनस्य रम्यं । पुराणयेत द्विपुलं विशालं जीयाच्चिरं पुण्यकरं नराणाम् ॥४६३ (युग्म) हरिवंश पुराण-इस ग्रन्थ की प्रति तेरहपंथी बड़ा मन्दिर जयपुर के शास्त्र भण्डार में उपलब्ध है, जिस का रचना काल सं० १६७५ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी है। (जैन ग्रन्थ सूची भा० २१० २१८) शेष पूजा ग्रन्थ हैं, उनकी प्रतियाँ सामने न होने से उनका परिचय देना शक्य नहीं है। भट्टारक चन्द्रकोति काष्ठासंघ नन्दितटगच्छ विद्यागण के भट्टारक श्रीभूषण के पट्टधर शिष्य थे । अच्छे विद्वान थे। इन्होंने अपने यस्थों के अन्त में जो प्रशस्ति दी है उसमें नन्दितट गच्छ के भद्रारकों की प्रशंसा की गई है । चन्द्रकीर्ति कहां के पट्रधर थे. उसका स्पष्ट निर्देश नहीं मिला। उस समय सोजित्रा के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी काष्ठासंघ के पटट रहे १. सं० १६०४ वर्षे वैशाखवदी ११ शुक्र काप्ठा संघे नन्दी तटगच्छे विद्यागणे भट्टारक रामसेनान्वये भ. श्री विशाल कीर्ति तत्पट्टे भट्टारक श्री विश्वसेन तत्पट्टे भ० विद्याभूषणेन प्रतिष्ठितं, हैवड जातीय गृहीत दीक्षा वाई अनन्तमती नित्यं प्रणमति ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591