Book Title: Jain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Rameshchandra Jain Motarwale Delhi

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Page 575
________________ १५वीं, १६वीं, १७वीं और १८वी शताब्दी के आवार्य, भट्टारक और कवि ५४१ हैं। चन्द्रकीति ने दक्षिण की यात्रा करते हए कावेरी नदी के तौर पर नरसिह पटन में कृष्ण भट्ट को बाद में पराजित किया था। यह १७वी शताब्दी के विद्वान थे । इनकी निम्न रचनाए उपलब्ध है- पायपुराण, वृपभदेव पुराण, कथाकोश, पद्मपुराण, पंचमेरू पूजा, अनंतव्रतपूजा आर नन्दीश्वर विधान आदि : पार्श्वपुराण-१५ सगों में विभक्त है, जिसका पद्य सख्या २७१५ है। इसमें तेवीसव तीर्थकर पार्श्वनाथ का चरित वर्णित है। कवि ने इसकी रचना देवगिरि नामक मनोहर नगर के पाश्र्वनाथ जिनालय में वि० सं० १६५४ के वैशाख शुक्ला सप्तमी गुरुवार को समाप्त की है। श्रीमद्देवगिरी मनोहरपुरे श्रीपाश्र्वनाथालये, वर्षब्धी पुरसैक मेय (१६५४) इह वै श्रीविक्रमांकेश्वरे । सप्तम्याँ गरवासरे श्रवण भे वशाखमासे सिते. पाश्र्वाधीशपुराणमुत्तमिदं पर्याप्तभेवोत्तरम् ।। (पाश्व० प्र०) वषभदेव पराण-इसमें आदिनाथ का चरित वणित है। यह २५ सर्गो में समाप्त हुआ है । कवि ने इस ग्रन्थ में रचना काल नही दिया, अतः दोना ग्रन्थों के अवलाकन किय बिना यह निश्चय करना कठिन है कि इनमें कौन ग्रन्थ पहले बना, और कौन बाद में । कथा कोश-में सप्त परमस्थान के व्रतों की कथाएदी हुई है, । ग्रन्थ दो अधिकारो मे समाप्त हुआ है । ग्रन्थ में रचना काल दिया हुआ नही है। अन्य ग्रन्थ सामन न हाने से उनका परिचय देना सम्भव नहीं है। ग्रन्थकर्ता कवि चन्द्रकीति १७वी शताब्दी के उत्तरार्ध के विद्वान है। भ० सकलभूषण मलसंघ स्थित नन्दिसघ पार सरस्वती गच्छ के भट्टारक विजय कीर्ति के प्रशिप्य और भट्टारक शुभचन्द्र के शिष्य एव भट्टारक सुमति कीति के गुरुभ्राता थे। भ० मुमतिकीर्ति भी शुभचन्द्र के शिप्य थे और उनके बाद पट्ट पर बैठे थे। भ० सकलभपण ने नेमिचन्द्राचार्य प्रादि यनियों के प्राग्रह तथा वर्धमान टोला आदि की प्रार्थना से उपदेश रत्नमाला नाम के ग्रन्थ की रचना वि० ग. १६२७ में थावण शुक्ला पाठी के दिन समाप्त की है । इस ग्रन्थ में १८ अध्याय और तीन हजार तीन सो तेगमी (३३८३) पद्य है। इनकी दूसरी कृत 'मल्लिनाथचरित्र' है, जिसकी प्रति बदी के अभिनन्दन स्वामी के मन्दिर के शास्त्र भंडार में उपलब्ध है । अन्य रचनाए' अन्वेपणीय है । कवि का समय १७ वीं शताब्दी है। भ० धर्मकोति मूलसघ सरस्वतीगच्छ ओर बलात्कार गण के विद्वान भट्टारक ललितकीति के शिप्य थे । ललितकीर्ति मालवा की गद्दी के भट्टारक थे । प्रस्तुत धर्मकीनि की दो रचनाएं उपलब्ध हैं-पद्मपुराण ओर हरिवंश पुराण । पद्म पुराण की रचना कवि ने रविषेण के पद्म चरित को देखकर मालव देश में सं०१६६६ में थावण महीने की तृतियाशनिवार के दिन पूर्ण की थी । और हरिवंश पुराण भी उसी मालवा में सं० १६७१ के आश्विन महीने की कृष्णा पंचमी -- १. सप्तविशत्यधिके पोडशशतवत्मरे (१६२७) विक्रमत. । श्रावणमासे शुक्ले पो पाट्या कृतो ग्रन्थ. । २३५ -जैन ग्रन्थ प्र० स० १ १० २० २. जैन ग्रन्थसूची भा० ५ पृ० ३६६ ३. "संवत्सरे द्वयष्ट शते मनोज्ञे चैकोन सप्तत्यधिके (१६६६) सुमासे । श्री श्रावणे सूर्यदिने तृतीयातिथौ च देशेष हि मालवेषु ॥ (पप पु० प्र०)

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