Book Title: Jain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Rameshchandra Jain Motarwale Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 465
________________ तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी के आचार्य, विद्वान और कवि सकलचन्द भट्टारक मूलसंघ काणूरगण तिन्त्रिणी गच्छ के विद्वान थे। महादेव दण्डनायक के गुरु थे । मुनिचन्द्र के शिष्य कलभषणति विद्य विद्याधर के शिप्य थे। शक वर्ष १११६ (वि० स १२५४) में महादेव दण्डनायक ने 'एरग' जिनालय बनवा कर उसमें शान्तिनाथ भगवान की प्रतिष्ठाकर सकलचन्द्र भट्टारक के पाद प्रक्षालन पूर्वक हिडगण तालाब के नीचे दण्ड से नापकर ३ मत्तल चावल की भूमि, दो कोल्ल और एक दूकान का दान किया। अतः इनका समय वि० की १३वी शताब्दी है। -- जैनलेम्व सं० भा० ३ पृ० २४६ सकलकोति यह माथुर संघ के प्राचार्य थे। संवत् १२३२ मे फाल्गुण सुदी १० मी को इनके भक्त श्रेष्ठी मनोरथ के पुत्र कुलचन्द्र ने मृति की प्रतिष्ठा की। (संवत् १०३२ फाल्गुन मुदि १० माथुरमंचे पडिताचार्य श्री सकलकीति भक्त श्रेष्ठ मनोरथ मुत कुलचन्द्र लक्ष्मी पति श्रेयमेकारितेय ।) इसी सवत् में एक दूसरी मूर्ति की भी प्रतिष्ठा उनके भक्त साह हेत्याक के प्रथम पुत्र वील्हण ने कल्याणार्थ की थी। (सं० १२३२ फाल्गुन सुदि १० माथुरमंघे पडिताचार्य श्री सकलकोनि भक्तिन साह हेत्याकेन प्रथम पुत्र वील्हण सुतेन श्रेयमे करणये । (कारितेयं) -दग्य, मागैठ का इतिहास नल्विगुंद मादिराज इसका जन्म साकल्य कूल में हया था। इसके पिता का नाम चाम और माता का नाम महादेवी था। नल्विगद ग्राम में इसका जन्म हुआ था। गुण वर्म का पुष्पदन्त पुराण ई० सन् १२२६ के लगभग बना है। उसकी एक प्रति के अन्त में दो पद्य दिये है। पद्यों की रचना देखने से ज्ञात होता है कि यह एक अच्छा कवि था। पुष्पदन्त पुराण की प्रतिलिपि करने के कारण यह उससे कुछ समय बाद सन् १३०० के लगभग हुअा होगा। इसकी अन्य कोई रचना प्राप्त नहीं हुई। शुभचन्द योगी इनके मंघ गण गच्छादि का कोई परिचय' उपलब्ध नही है। संभवतः यह मूलसंघ के विद्वान थे, तपश्चरण द्वारा प्रात्म-शोधन में तत्पर थे। रागादिरिपुमल्लाण-रागादि शत्रुओं को-जीतने के लिये मल्ल थे कषाय और इन्द्रिय जय द्वारा योग की साधना में उन्होंने चार चांद लगा दिये थे। उस समय वे अत्यन्त प्रसिद्ध थे। जाहिणी प्रायिका ने, तपस्या द्वारा शरीर की क्षीणता के साथ कषायों को कृशकिया था। उसने अपने ज्ञानावरणी कर्मके क्षयार्थ शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव की प्रति लिखवा कर संवत् १२८४ में उन प्रसिद्ध शुभचन्द्र योगी को प्रदान की थी। इससे इन शुभचन्द्र का समय विक्रम की १३ वीं शताब्दी है । -देखो ज्ञानार्णव की पाटन प्रति की लिपि प्रशस्ति । मल्लिषेण पंडित-- यह द्रविल संघ स्थित नन्दिसंघ अरुन्गलान्वय के विद्वान श्रीपालविद्य देव के प्रशिष्य और वासुपूज्य देव के शिष्य मल्ल पंडित को शक वर्ष १०५० (वि० सं० १२३५) में पारिसण्ण की मृत्यु के बाद उसके पुत्र शान्तियण दण्डनायक ने एक वसदि बनवाई और उसके लिये भूमिदान और दीपक के लिये तेल की चक्की दान में दी। तथा मल्ल गौण्ड प्रौर समस्त प्रजा ने गांव के घाट की प्रामदनी, तथा धान से चावल निकालते समय अनाज का हिस्सा भी उक्त मल्लिषेण पण्डित को दिया। मल्लिषेण पंडित का समय विक्रम को १३वीं शताब्दी है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591