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62 / जैन धर्म और दर्शन
पातञ्जलि के उपर्युक्त कथन से जैन दर्शन मान्य द्रव्य को नित्यता और पर्याय की अनित्यता का पूर्णतया पोषण होता है । नित्यानित्यात्मक होने से उत्पाद-व्यय ध्रौव्य रूप वस्तु को 'मीमासक दर्शन' के प्रवर्तक 'कुमारिल भट्ट' ने भी स्वीकार किया है। उन्होंने तो 'आचार्य समन्त भद्र' कृत उदाहरण को भी अपनाया है। वे वस्तु को त्रयात्मक मानते हुए कहते हैं
वर्धमारक भगे य रुचक क्रियते यदा । तदा पूवार्थिन शोक प्रीतिश्चाप्युत्तरार्थिन ॥21 हेमार्थिनस्त माध्यस्थ्य तस्माद्वस्तु त्रयात्मक् । नोत्पादस्थिति भगानामभावे स्यान्मतित्रयम् ।।22 न नाशेन बिना शोको नोत्पादेन बिना सुखम् ।
स्थित्या बिना न माध्यस्थ्य तेन सामान्य नित्यता ।।23 अर्थात्-सुवर्ण के प्याले को तोडकर जब माला बनाई जाती है, तब प्याले के इच्छुक मनुष्य को दुख होता है , माला इच्छुक मनुष्य आनदित होता है, कितु स्वर्ण के इच्छुक मनुष्य को न हर्ष होता है और न शोक । अत वस्तु त्रयात्मक है। यदि पदार्थ में उत्पाद, स्थिति और व्यय न होते. तो तीन व्यक्तियों के तीन प्रकार के भाव नही होते। क्य प्याले के नाश के बिना प्याले के इच्छुक व्यक्ति को शोक नही होता। माला के उत्पाद बिना माला के इच्छुक व्यक्ति को सुख नही होता तथा स्वर्ण का इच्छुक मनुष्य प्याले के विनाश और माला के उत्पाद में माध्यस्थ नही रह सकता। अत वस्तु सामान्य से नित्य है (और विशेष से अनित्य)।
यद्यपि द्रव्य को गुण-पर्याय वाला कहा गया है तथा उनके परस्पर भेद भी बताए गए है कितु ये पृथक् पृथक् नही है, इनमे कोई सत्तागत भेद नही है अपितु तीनों एक रस रूप हैं, एक सत्तात्मक है। पर्याय से रहित गुण और द्रव्य तथा द्रव्य और गुण से रहित कोई पर्याय नही होती। तीनो की सयुति ही द्रव्य है। जैसे स्वर्ण अपने पीतत्वादि गुण तथा कडा, कुण्डलादि आकृतियों से रहित नही मिलता, वैसे ही पदार्थ जब भी मिलता है वह अपने गुण और पर्यायों के साथ ही मिलता है। इसलिए पर्याय को द्रव्य और गुण से अपृथक कहा गया है।
पज्जयविजुद दव्व दव्व विजुत्ता य पज्जयाणत्थि।
दोण्ह अणण्ण भूद भाव समणा परूवेति ।।12 प का अर्थात् पर्याय से रहित कोई द्रव्य नही तथा द्रव्य से रहित कोई पर्याय नही है, दोनों अनन्य भूत है, ऐसा जिनेन्द्र कहते हैं। वस्तुत पदार्थ गुण और पर्यायो का अपृथक् गुच्छ है।
इस प्रकार हमने सत् रूप पदार्थ के स्वरूप को समझा । यह उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक है तथा गुण और पर्याय वाला है। अब हम इसके गुण और पर्यायों पर विचार करते
1 मी. श्लोक वा
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