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70 / जैन धर्म और दर्शन
5. एक निर्णय यह बताता है कि मृत्यु के बाद आत्मा की संभावना है। ज्योति काष्ठ से भिन्न है । काष्ठ तो थोड़ी देर उसे प्रकट करने में ईंधन का काम करता है । "1
- आर्थर एच कांपटन
6. “ वह समय आएगा जब विज्ञान द्वारा अज्ञात विषय का अन्वेषण होगा । विश्व जैसा कि हम सोचते थे उससे भी कहीं अधिक उसका आध्यात्मिक अस्तित्व है । वास्तविकता तो यह है हम उक्त आध्यात्मिक जगत् के मध्य में हैं जो भौतिक जगत् से ऊपर है | "2
- 'सर ऑलीवर लॉज'
7. जैसे मनुष्य दो दिन के बीच की रात्रि में स्वप्न देखता है वैसे ही मनुष्य की आत्मा मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच विहार करती है । 3
- 'सर ऑलीवर लॉज'
जीव का स्वरूप
यद्यपि जीव के अस्तित्व को सभी आत्मवादी दर्शन स्वीकार करते हैं, किंतु उसके स्वरूप के संबंध में सबकी ऐकांतिक अवधारणाएं हैं। सभी दर्शन जीव की किसी एक विशेषता को ग्रहण कर उसे ही उसका स्वरूप मान बैठने की भूल में हैं। जैन दर्शन में जीव का सर्वांगीन स्वरूप मिलता है । विविध दर्शनकारों के मतों को दृष्टिगत रखते हुए जैन दर्शन में जीव का स्वरूप अनेकांतिक ढंग से प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि
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जीवो उवओगमओ अमुत्ति कत्ता सदेह परिमाणो
भोत्ता संसारत्यो सिद्धो सो विस्सोढ गई 14
अर्थात् जीव उपयोगमयी है, अमूर्तिक है, कर्त्ता है, स्वदेह परिमाण वाला है, भोक्ता है, संसारी है, सिद्ध है तथा स्वाभाविक ऊर्ध्वगति वाला है।
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उपयोगमय है— चैतन्यानुविधायी आत्मा के परिणाम को उपयोग कहते है । अर्थात् जो परिणाम आत्मा के चैतन्य गुण का अनुसरण करते हैं, वह उपयोग है । उपयोग रूप चेतना जीव का लक्षण है।" जैन शास्त्रों में उपयोग शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए कहा गया है
1 A conclusion which suggests the possibility of consciousness after death the flame is distinct from the log of wood which act temoporanty as fuel 1 से 5 तक-जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान पर उद्भुत पृष्ठ स. 99 100
2 The Time will assuredly come when these avenues into unknown region will be explored by science The universe is a more spiritual entity than we thought The real fact is that we are in the midst of a spiritual world which dominates the material
3 The soul of man passes between death and rebirth in this world as he passes through dream in the night between day and day 4 से 7
जैन दर्शन और आधुनिक विज्ञान पर उद्भुत पृ. सं. 99-100
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द्रव्य स, गा. 2
5 सर्वा सि. 117
6 त स 48