Book Title: Jain Dharm aur Darshan
Author(s): Pramansagar
Publisher: Shiksha Bharti

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Page 286
________________ 276 / जैन धर्म और दर्शन केवल दर्शन केवल ज्ञान केशलोंच क्षणक श्रेणी क्षमा क्षीण मोह क्षुल्लक गुण गुप्ति गुरु गुरुमूढ़ता गुणव्रत गुणस्थान ज्ञान उपयोग चक्रवर्ती चक्षुदर्शन चारित्र चेतना चैत्यवास चौरप्रयोग चौरार्थादान छह आवश्यक छेदन छेदोपस्थापना जरायुज जिन जीव जैन तत्व तप तारणपंथ तेरह पंथ 72 193 247 204 180 205 239 60,63 149 185 187 231 199 79 26 72 155 67 48 226 226 247 224 155 83 15 19,54,67 16 54 150,158 47 47 तैजस शरीर त्याग त्रस दर्शन दर्शनोपयोग दर्शनप्रतिमा दिगम्बर दिग्वत दुश्रुति देव देव मूढ़ता द्वेष देशव्रत द्रव्य द्रव्यास्त्राव द्रव्य निर्जरा द्रव्य हिंसा द्रविड़ धर्म धर्म द्रव्य धर्मध्यान धारणा धौव्य ध्यान नवधाभक्ति नारायण निर्ग्रथ निर्जरा नित्य निघत्ति 81 150 78 15 71, 72 235 42 231 234 183 187 119 231 59, 60 106 157 216 34 15, 150 19, 98 163 192 20, 59 163 236 20 244 20, 54, 157 60 140 97 180 निश्चयकाल निश्चय मोक्षमार्ग निर्वि चिकित्सा निकांक्षित निःशंकित निकाचित नैष्टिक श्रावक न्यासापहार परमाणु परमात्मा परमुखोदय परिहार विशुद्धि परिग्रहपरिमाण व्रत परिग्रह विरति परिवाद परिषह जय पर्याप्ति पर्याय पांच समिति पापोपदेश प्रोषछोपवास प्रत्याख्यान पंचास्तिकाय पंचेन्द्रिरोध प्रति नारायण प्रकृति बंध प्रतिक्रमण प्रतिग्रह प्रेदश प्रभावना प्रमत्तविरत प्रमादचर्या प्रायश्चित्त पाक्षिक श्रावक 188 188 188 140 230 225 87 201 138 155 225 238 225 153 83 63 247 234 235 248 100 245 27 111 247 237 88 189 204 238 161 223

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