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कर्म और उसके भेद-प्रभेद / 121
करता है उसी प्रकार नाम कर्म जीव के चित्र-विचित्र शरीर का निर्माण करता है। 'गोत्र' कर्म कुम्हार की तरह है। जिस प्रकार कुम्हार छोटे-बड़े बर्तनों का निर्माण करता है, उसी प्रकार गोत्र कर्म जीव को उच्च और नीच कुलों में उत्पन्न कराता है। ‘अंतराय' कर्म भंडारी की तरह है। जिस प्रकार भंडारी की अनुमति के बिना राजकोष से धन नहीं निकाला जा सकता, उसी प्रकार अंतराय कर्म जीव की अनंत शक्ति का प्रच्छादक है।
इस प्रकार ये आठ कर्मों के मूल भेद हैं। किंतु इनकी उत्तर प्रकृत्तियां (प्रभेद) 148 हो जाते हैं।
कर्म के उत्तर भेद ज्ञानावरण कर्म-ज्ञानावरण कर्म जीव के ज्ञान गुण को आच्छादित/आवृत करता है। जिसके कारण इस संसार अवस्था में उसका पूर्ण विकास नहीं हो पाता। जिस प्रकार देवता की मूर्ति पर ढका हुआ वस्त्र देवता को आच्छादित कर लेता है, उसी प्रकार ज्ञानावरणी कर्म ज्ञान को आच्छादित किए रहता है। इतना होने पर भी वह जीव की ज्ञान-शक्ति को पूर्णतया आवृत नहीं कर पाता। जिस प्रकार सघन-घटाओं से आच्छादित रहने पर भी सूर्य प्रकाश का अभाव (दिन में) पूर्णतया नहीं हो पाता, उसी प्रकार ज्ञानावरणी कर्म का तीव्रतम उदय होने पर भी वह जीव को ज्ञान शक्ति को पूर्णतया नष्ट/आवृत नहीं कर सकता, जिससे कि जीव सर्वथा ज्ञान-शन्य होकर जडवत हो सके। ज्ञानावरणी कर्म के पाँच उत्तर भेद हैं-1. मति-ज्ञानावरण. 2. श्रत-ज्ञानावरण.3. अवधि-ज्ञानावरण.4. मनःपर्यय-ज्ञानावरण, 5. केवल ज्ञानावरण। ये पांचों कर्म क्रमशः पूर्वोक्त पांच ज्ञानों को आवृत करते हैं।
निम्न कारणों से ज्ञानावरणी कर्म का विशेष बंध होता है'1. ज्ञान ज्ञानी तथा ज्ञान के साधन के प्रति द्वेष रखने से। 2. ज्ञान-दाता गुरुओं का नाम छिपाने से। 3. ज्ञान, ज्ञानी तथा ज्ञान के साधनों का नाश करने से। 4. ज्ञान के साधनों की विराधना करने से। 5. किसी के ज्ञान में बाधा डालने से।
2. दर्शनावरणी कर्म-पदार्थों की विशेषता को ग्रहण किए बिना केवल उनके सामान्य धर्म का अवभास करना दर्शन है। दर्शनावरणी कर्म उक्त दर्शन गुण को आवृत करता है। दर्शन गुण के सीमित होने पर ज्ञानोपलब्धि का द्वार बंद हो जाता है। इसकी तुलना राजा के द्वारपाल से की जा सकती है। द्वारपाल राजा से मिलने में किसी व्यक्ति को बाधा पहुंचाता है । जिस प्रकार द्वारपाल की अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति राजा से नही मिल सकता, वैसे ही दर्शनावरणी कर्म वस्तुओं के सामान्य बोध को रोकता है। पदार्थों को देखने में अड़चन डालता है। इसकी नौ उत्तर प्रकृत्तियां हैं-1. चक्षु-दर्शनावरण, 2. अचक्षु-दर्शनावरण, 3. अवधि दर्शनावरण, 4. केवल दर्शनावरण, 5. निद्रा,6. निद्रा-निद्रा,
1. द्र. स. गा 35 2. सू.8/6 3. तसू.6/10