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214 / जैन धर्म और दर्शन
असावधानीकृत हिंसा है। यदि ड्राइवर सावधान होता है तो उक्त घटना टाली जा सकती
थी।
तीसरी ओर डाक्टर को कोई अपराधी नहीं कहता, अपितु डाक्टर साहब तो अंतिम
बचाने की कोशिश में लगे रहे, यह कहकर उनकी सराहना की जाती है। पुलिस और अदालत भी उसका कुछ नहीं करते । रोगी के संबंधी भी यही कहते हैं कि डाक्टर साहब ने तो बहुत प्रयत्न किया लेकिन क्या करें, हमारा तो भाग्य ही ऐसा था।
_ हिंसा और अहिसा की उक्त धारणा से स्पष्ट है कि हिंसा और अहिसा हमारे भावों पर ही निर्भर है। द्रव्य हिंसा ही हिसा नहीं, वस्तुतः भाव हिंसा ही वास्तविक हिंसा है। आशय यह है कि किसी को कष्ट पहुंचाने या घात होने पर भी कोई व्यक्ति तब तक हिसक नहीं कहा जा सकता जब तक कि उसका वैसा अभिप्राय नहीं हो अथवा असावधानी न हो। इसके विपरीत यदि किसी का अभिप्राय किसी के घात करने का हो तथा बहुत कोशिश करने पर भी वह उसका कुछ अनिष्ट न कर सका हो तो वह जीव हिसक ही माना जायेगा। दूसरों का अहित चाहने वाला सबसे पहले अपना अहित करता है। कहा भी है
स्वयमेवात्मात्मान हिनस्त्यात्मा प्रमादवान्।
प्राण्यंतराणांतु पश्चाद स्याद्वानवावधः ।। इसलिये जैन धर्म में हिसा को द्रव्य हिसा और भाव हिसा के भेद से दो भागों में विभाजित किया गया है। अत्यन सावधानी और सदअभिप्राय होने पर भी जब किसी का घात हो जाता है तब वह द्रव्य हिसा कहलाती है, तथा किसी को मारने या सताने के अभिप्राय अथवा असावधानी के भाव को भाव हिसा कहते हैं। वस्तुत. भाव हिसा ही हिसा है। भाव हिसा से सबध होने पर ही द्रव्य हिसा, हिसा कहलाती है। कितु द्रव्य हिसा के होने पर भाव हिसा अनिवार्य नही। अत हमारे भावो के अनुसार ही हिसा और अहिसा का समीकरण बनता है।
भावों पर आधारित हिसा और अहिसा की उक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि पूर्ण सावधानी से प्रवृत्ति करने वाले हिसा की भावना से रहित मनुष्य के द्वारा यदि किसी जीव का घात हो जाता है तो वह उसके पाप का भागीदार नही है। अतः अहिसा को अव्यवहार्य नही कहा जा सकता। हमारा तो यही कर्त्तव्य है कि हम अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर किसी को कष्ट पहुंचाने का कभी भाव न करें,तथा हमारी प्रवृत्ति से जीवों का कम से कम घात ह बात को ध्यान रखकर अपने जीवन का निर्वाह करे। हमारी प्रवृत्ति में जितनी सावधानी होगी हम उतने ही अहिसक कहला सकेंगे।
हिंसा के भेद अहिसा का व्यावहारिक रूप से पालन हो सके.इसलिये हिसा के चार भेद किये गये हैं:1. संकल्पी हिसा 2. आरभी हिमा 3. उद्योगी हिसा 4. विरोधी हिंसा।
1 मानवता की धुरी 143 2 सर्वा सि पृ272 3 जे सि को 4/532