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श्रावकाचार
श्रावक का अर्थ श्रावकाचार का तात्पर्य है-गृहस्थ का धर्म । 'श्रावक' शब्द का सामान्य अर्थ है-सुनने वाला। जो गुरुओं के उपदेश को श्रद्धापूर्वक सुनता है, वह श्रावक है। श्रावक शब्द तीन अक्षरों के योग से बना। श्र' 'व' 'क' इसमें 'अ' श्रद्धा का.'व' विवेक का तथा 'क' कर्तव्य का प्रतीक है। इस प्रकार श्रावक का अर्थ करते हुए कहा गया है कि जो श्रद्धालु और विवेकी होने के साथ-साथ कर्त्तव्यनिष्ठ हो, वह श्रावक है। श्रावक के अर्थ में, उपासक, सागार, देश विरत, अणुव्रती आदि अनेक शब्द आते हैं। गुरुओं की उपासना करने वाला होने से उसे उपासक, आगार/घर सहित होने से सागार गृही या गृहस्थ, तथा अणुव्रतधारी होने से अणुव्रती, देशव्रती या देश संयत कहा जाता है। व्रतों के परिपालन क्रमानुसार श्रावक के तीन भेद किए गए हैं—पाक्षिक, नैष्ठिक और साधक ।'
पाक्षिक पाक्षिक का अर्थ है जो जिनेन्द्र भगवान् के पक्ष को ग्रहण कर नुका है, पाक्षिक श्रावक की श्रेणी में वे सभी श्रावक आ जाते हैं जो जिनेन्द्र भगवान् के पक्ष को ग्रहण करते हैं तथा जैन कुल क्रमानुसार अपना आचरण रखते हैं। यह गृहस्थ की प्राथमिक भूमिका है। इस भूमिका वाले श्रावक में सभी आवश्यक नैतिक गुण आ जाते हैं।
जैन आचार शास्त्रानुसार एक आदर्श गृहस्थ वही है जो न्यायपूर्वक आजीवकापार्जन करता है । गुणी पुरुषों एवं गुणों का सम्मान करता है । वह हितकारी और सत्य वाणी बोलता है। धर्म,अर्थ और काम रूप तीन पुरुषार्थों का परस्पर अविरोध से सेवन करता है । इन पुरुषार्थों के योग्य स्त्री,भवनादि को धारण करता है । लज्जाशील होता है, अनुकूल आहार-विहार करने वाला होता है । सदाचार को अपने जीवन की निधि मानने वाले सत्पुरुषों की सेवा में सदा तत्पर रहता है। हिताहित विचार में दक्ष,जितेन्द्रिय और कृतज्ञ होता है। धर्म की विधि को सदा सुनता है, उसका मन दया से द्रवीभूत रहता है, तथा पाप भीरू होता है । उक्त चौदह विशेषताओं से भूषित व्यक्ति ही एक आदर्श गृहस्थ की श्रेणी में समाविष्ट होता है।'
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1. साथ 1/20 2.जे.सि. का 4/46 3. न्यायोपात धन यजन् गुण गुरुण सद्रीनिवर्ग भजन नन्योन्यानुगुणं तदह गृहणी स्थानालयो हीमयः । युक्ताहार विहार आर्य समितिः प्राज्ञः कृतज्ञोवशी श्रुण्वन धर्म विधि दयालु रधमीः सागार धर्म चरेत। -स... II