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194 / जैन धर्म और दर्शन
वीतरागता कहते हैं।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट है कि जैन दर्शन में मोक्ष का स्वरूप और उसकी प्राप्ति की प्रक्रिया का सूक्ष्म, तर्क संगत और वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। मोक्ष आत्म विकास की परम और पूर्ण अवस्था है।
जैन धर्म और अवतारवाद अवतारवाद के सम्बन्ध में जैन धर्म का अपना अलग दृष्टिकोण है। वह अनंत आत्मायें मानता है । वह प्रत्येक आत्मा को परमात्मा बनने का अधिकार प्रदान करता है तथा परमात्मा बनने का मार्ग भी प्रस्तुत करता है। किंतु यहां परमात्मा के पुनः भवांतरण को मान्यता नहीं दी गई है। इस धर्म के अनुसार प्रत्येक आत्मा कृत कर्मों का नाश करके परमात्मा बन सकती है । स्वरूप दृष्टि से सब आत्मायें एक (समान) है। यहां तक कि हाथी और चींटी दोनों में आत्मायें समान हैं। वास्तव में सब आत्मायें अपने आप में स्वतंत्र तथा पूर्ण हैं। वे किसी अखंड सत्ता की अंशभूत नहीं है। प्रत्येक नर को नारायण और भक्त को भगवान बनने का अधिकार देना ही जैन धर्म की पहली और अकेली मान्यता है। इसी आधार पर जैन धर्म में व्यक्ति विशेष की अपेक्षा यहां मात्र गुणों के पूजने का विधान है। उसका आराध्य मंत्र णमोकार मंत्र (नमस्कार मंत्र) है। बैरिस्टर चम्पतरायजी ने अपने महत्वपूर्ण ग्रंथ Key of Knowledge में ठीक ही लिखा हैMan-Passions = God God + Passions = Man अर्थात् मनुष्य- वासनाएं = भगवान ईश्वर +वासनाएं = मनुष्य
1.वही गाथा 46