________________ तब तो सारी दुनिया पाप कर रही है, तो वे सब के सब दूसरे जन्म में मानव हो जाए !! तब तो मानवों की संख्या असंख्य-अनंत दिखाई पड़े ! किन्तु ऐसा दिखता नहीं है / इससे यह सूचित होता है कि जैसे पूर्वजन्म के धर्म से ही हम मानव जन्म पाएँ, वैसे ही इस जन्म में भी हम अगर धर्म करते रहेंगे, तभी हमें अगले जन्म में मानव जन्म मिलनेवाला है / (5) जगत् में जो सद् व्यवहार चलता है, वह अनाडी लोगों के पापजीवन से नहीं, किन्तु सज्जनों के धर्म-जीवन से चलता है / वास्ते जीवन में धर्म अत्यन्त जरूरी है / "व्यसनशतगतानां, क्लेशरोगातुराणाम् , मरण-भयहतानां, दुःखशोकार्दितानाम् / जगति बहुविधानां, व्याकुलानां जनानां, शरणमशरणानां, नित्यमेको हि धर्मः" / / भावार्थः- सैंकडो संकट-ग्रस्तों के लिए, क्लेश व रोगों से पीडितों के लिए, मरण-भय से त्रस्तों के लिए, दुःख-शोक से व्यथितों के लिए, तात्पर्य, अनेक प्रकारेण व्याकुलों के लिए, तथा अशरण (निराश्रितों) के लिए संसार में सदा धर्म ही एक मात्र शरण है / SA 380