Book Title: Jain Dharm Ka Parichay
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 326
________________ साध्य 'अग्नि' और हेतु 'धुए' का अविनाभाव संबंध है / अग्नि के बिना धुऐं का भाव - सद्भाव - अस्तित्व नहीं / अतः धुआँ अग्नि का अविनाभावी हुआ / 'अविनाभावी' का तात्पर्य है जो अमुक के अभाव में न हो सके इसी प्रकार धुआं अग्नि का अन्यथानुपपन्न है | अन्यथा = बिना / अनुपपन्न = न घटित होने वाला / धुआं अग्नि के अभाव में उत्पन्न नहीं हो सकता / 'अविनाभाव' और 'अन्यथानुपपन्नत्व को व्याप्ति कहते है / अविनाभावी को व्याप्य और उसके दूसरे संबंधी को 'व्यापक' कहते हैं / जैसे धुआं व्याप्य है और अग्नि व्यापक व्याप्य तथा व्यापक के बीच जो व्याप्ति विद्यमान है / उस व्याप्ति का ज्ञान हो तो व्याप्य से व्यापक का अनुमान हो सकता है / यह 'अन्वयीव्याप्ति' से हुआ ऐसे कहा जाए व्यापक के अभाव द्वारा व्याप्य के अभाव का ज्ञान संभव है, इससे व्यतिरेकी व्याप्ति के द्वारा हुआ माना जाता है, (अन्वय = संबंध, सद्भाव / व्यतिरेक = अभाव) / (4) व्याप्ति और उदाहरण का ज्ञान हो जाने पर 'उपसंहार' किया जाता है / जैसेकि पर्वत में अग्नि का व्याप्य धुआं है / उसे 'उपनय' कहते हैं / (5) फिर यह निर्णय होता है कि 'पर्वत में अग्नि है' / यह 'निगमन' वाक्य है / ये पांच अवयव ‘पदार्थ अनुमान' में (दूसरों को अनुमान करवाने में) आवश्यक है / 'स्वार्थानुमान' जो हेतु व निगमन दो से होता 3210

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