Book Title: Jain Dharm Ka Parichay
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 328
________________ आदि 'पर्याय' तन्मय भाव से रहते हैं / इसके अतिरिक्त, यह वस्तु जगत् के अनन्त पदार्थो के साथ कारणता, अकारणता, कार्यता, अकार्यता, सहभाविता - विरोधिता, समानता, असमानता आदि अपेक्षा से संबद्ध है / उन अपेक्षाओं से उसमें वैसे वैसे अनेक धर्म हैं / जैसेकि दीपक के प्रकाश पर विचार करें - इसमें तेज (जगमगाहट) पीलापन आदि गुण हैं / दीपक तेल का है, मणिलाल का है, घर में है इत्यादि विशेषताएं ये पर्याय हैं / इसी प्रकार दीपक में अन्धकार की विरोधिता है, तेल व बत्ती की कार्यता है, वस्तु-दर्शन की कारणता हैं इत्यादि अपरंपार धर्म है / / ये 'अन्वयी धर्म' है / अन्वयी धर्म वे होते हैं जो वस्तु में अस्तित्व संबंध से बद्ध हैं | इन्हे स्वपर्याय कहते हैं / दीपक तेल का कार्य है / पानी का नही, इसलिए दीपक में पानी की कार्यता नहीं है / वैसे ही दीपक में श्याम रुप नहीं है, शीत अथवा कठिन स्पर्श नही है...आदि / ये व्यतिरेकी धर्म हैं / इनका वस्तु से सम्बन्ध नास्तिक संबंध है / इन्हे पर पर्याय कहते है / __ वैसी वैसी अपेक्षाओ से ही इन धर्मो में से किसी धर्म को या अंश को सन्मुख रखकर वस्तु का ज्ञान कराने वाला समर्थ 'नयज्ञान' है / उदाहरणतः मनु अहमदाबाद में रहता है / यद्यपि वह भारत में भी रहता है, गुजरात में भी रहता है, और अहमदाबाद में भी किसी एक पोल में रहता है, तथापि यहां अन्य नगरों की अपेक्षा SOR 323

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