Book Title: Jain Dharm Ka Parichay
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 329
________________ से विशेषतः 'अहमदाबाद' नगर का उल्लेख कर ज्ञान किया गया / यह नय ज्ञान है / ' इसी प्रकार मनु के अन्य धर्म आयु, कद, आरोग्य अध्ययन आदि को भी यहां लक्ष्य में नहीं लिखा / नहीं तो ऐसा कथन किया जाता कि 'कुमार मनु' या 14 वर्ष का मनु या 'तगडा मनु' इत्यादि / ___ वस्तु में किसी ऐक अपेक्षा से निश्चित हुए अंश द्वारा वस्तु का होने वाला बोध या शाब्दिक व्यवहार 'नय' कहलाता है / नय सात 7 नय : नय :- जब 'नय' वस्तु के अंश का ज्ञान कराता है, तब यह सरलता से समझ सकते है कि उस अंश का ज्ञान किसी दृष्टि - बिन्दु के हिसाब से होगा / अतः नय को "दृष्टि" भी कहा जाता है / इसके भेद उतने हो सकते है जितने वचन-प्रकार है / किन्तु अधिक प्रचलित संग्रहक भेद सात है :- 1 नैगमनय, 2 संग्रहनय, 3 व्यवहार नय, 4 ऋजुसूत्र नय, 5 शब्द सांप्रत नय, 6 समभिरुढ नय, तथा 7 एवं भूत नय / (1) नैगमनय :- प्रमाण वस्तु को समग्रता से ग्रहण करता है, अतः किसी अपेक्षा की और उसका ध्यान नहीं होता / नय वस्तु को उसके अनेक अंशों में से एक अंशे के रूप में देखता है / अतः ER 32480

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