________________ मेरा शरीर बिगडेगा / ' यह 'मेरा' कहनेवाली आत्मा अलग द्रव्य सिद्ध होती है / यदि शरीर ही आत्मा होता तो वह इस प्रकार कहता'मैं अधिक खाऊं तो मैं बिगडु; किन्तु कोई ऐसा कहता नही है / इसी प्रकार डाक्टर को भी यह कहा जाता है : 'डाक्टर साहब! देखिए न; रात में मेरा शरीर बिगड़ गया हैं / ' यहाँ यह नहीं कहा जाता कि 'रात में मैं बिगड गया हूँ / ' इन सब प्रमाण से शरीर से अतिरिक्त आत्मद्रव्य सिद्ध होता है / (11) जीव के भेद विश्व में जीव दो प्रकार के हैं- 1. मुक्त, और 2. संसारी / 'मुक्त' अर्थात् आठों प्रकार के कर्मों से रहित / 'संसारी' अर्थात् कर्मबन्ध के कारण भिन्न-भिन्न गतियों, शरीरों पुद्गलों और भावों में संसरण करनेवाले, भटकने वाले / संसारी जीव एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के होते हैं / इसमें केवल एक-स्पर्शनेन्द्रियवाले जीव 'स्थावर' कहलातें है / द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, आदि जीव 'त्रस' कहलाते हैं / इन्द्रियों की गिनती अपने मुख पर दाढ़ी से कान तक के क्रम के अनुसार समझनी चाहिए | एकेन्द्रिय जीवों के केवल स्पर्शनेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय जीवों को स्पर्शन और रसना-इन्द्रिय, त्रीन्द्रिय जीवों को इन