________________ यथाख्यात चारित्र, क्षायिक सम्यक्त्व, अनाहारक, केवल-ज्ञान, केवलदर्शन, -इतनी मार्गणाओं में मोक्ष होता है / शेष में नहीं / जैसे कि, गति मार्गणा में देवादि गति में मोक्ष नहीं / इन्द्रिय में एकेन्द्रिय को मोक्ष नहीं / योग, वेद आदि मोक्ष के पूर्व शैलेशी के समय होते ही नहीं / अतः इतने मार्गणा-द्वारों में मोक्ष नहीं होता / यह 'मोक्ष सत्' अर्थात् उसके अस्तित्व की विचारणा है / इस प्रकार 62 मार्गणाओं में हरेक में द्रव्य-प्रमाण, क्षेत्र, आदि की विचारणा करनी है / अर्थात् जीव कितनी संख्या में मोक्ष जाते है? कितने क्षेत्र में? आदि का विचार / (1) सत्पद- 'मोक्ष' पद सत् पद है / क्योंकि यह असत् नहीं, कल्पित नहीं, किन्तु वास्तविक मोक्ष का वाचक पद है / (2) द्रव्य-प्रमाण, - जैसे कि, सिद्धो अनंत है; सब जीवों से अनन्त वें भाग में हैं तथा सर्व अभव्यो से अनन्त-गुण हैं / __(3-4) क्षेत्र और स्पर्शना, - एक अथवा समस्त सिद्ध लोकाकाश क्षेत्र के असंख्यातवें भाग की अवगाहना तथा स्पर्शनावाले है। अवगाहक्षेत्र की अपेक्षा स्पर्शना यह आसपास के स्पृष्ट आकाश-प्रदेशों से अधिक हैं / (5) काल, - एक सिद्ध की अपेक्षा से काल सादि अनन्त है सादि का भाव यह है, -किसी एक जीव की अपेक्षा से मोक्ष का 15680