Book Title: Jain Dharm Ka Parichay
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 323
________________ हैं :- 1. ऋजुमति 2. विपुलमति | ऋजुमति मन को सामान्य रूप से देखता है, जैसे कि 'यह मनुष्य घडे का चिन्तन कर रहा है / विपुलमति विशेष रुप से ज्ञान करता है | जैसे कि यह पाटलीपुत्र के अमुक समय में तथा अमुक द्वारा निर्मित घडे का विचार कर रहा 5. केवलज्ञानः- तीनों काल के समस्त द्रव्यों को व समस्त पर्यायों को प्रत्यक्ष देख सके यह केवलज्ञान है / केवलज्ञानी को विश्व को किसी भी काल की कोई भी वस्तु अज्ञात नहीं, उसे सर्व ज्ञात ही है / अज्ञात नहीं, अतः यहाँ लेशमात्र अज्ञान नहीं, केवल ही प्रगट होता है / जब आत्मा समकित सहित सर्वविरति चरित्र, अप्रमत, अपूर्वकरण आदि गुणस्थानकों पर आरोहण करते हुए शुक्ल ध्यान के द्वारा सर्व मोहनीय कर्म का नाश करके सर्व-ज्ञानावरण-दर्शनावरण-अन्तराय कर्मो का नाश कर डालता है / तब केवलज्ञान प्रगट होता है / ज्ञान कोई नया बाहर से नहीं आता वह तो आत्मा के स्वरुप में विद्यमान है / केवल उसके ऊपर आवरण लगा हुआ है / जैसे जैसे वह टूटता जाता है, वैसे वैसे ज्ञान प्रगट होता जाता है / जब समस्त आवरण नष्ट हो जाता है तब 13 वें, गुणस्थानक में समस्त लोकालोक का प्रत्यक्ष करनेवाला 'केवलज्ञान' प्रगट होता है / वहां सर्वकाल-सर्वदेश के सर्वद्रव्यो का प्रत्यक्ष होता है / 3180

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