________________ न होकर निष्कपट हो, वैसा ही करना / (iii) भूलते हुए जीव को भूलो के अनर्थ बताना, और (iv) सबके साथ हृदय से मैत्रीभावस्नेहभाव रखना / ___5. गुरु-शुश्रूषु बनना :- (i) गुरु के ज्ञान-ध्यान में विघ्न न हो व अच्छी सुविधा रहे इस प्रकार उनकी स्वयं समयोचित अनुकूल सेवा करनी / (ii) गुरु के गुणानुवाद करके दूसरो को उनके प्रशंसन सेवक बनाना / (iii) उनके लिए स्वंय या दूसरों से आवश्यक औषधि आदि का प्रबन्ध करना, कराना, और (iv) सदा बहुमानपूर्वक गुरु की इच्छा का अनुसरण करना / (6) प्रवचन-कुशल बनना :- सूत्र, अर्थ, उत्सर्ग, अपवाद, भाव और व्यवहार में कुशल होना / अर्थात् (i) श्रावक के योग्य सूत्र व शास्त्रो को पढ़ना / (ii) उनके अर्थ सुनना, समझना / (iii-iv) धर्म में 'उत्सर्ग मार्ग' अर्थात मुख्य मार्ग कौनसा है? उसी प्रकार कैसे द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव में कब किस-विषय में किस प्रकार के अपवाद का सेवन करना? इसे जानना (v) सारी धर्मसाधना विधिपूर्वक करने का पक्षपात रखता, और (vi) किस देश-काल के योग्य शास्त्रज्ञ गुरु का कैसा कैसा व्यवहार व वर्तन होता है, इसे समझना, व इसका लाभानुलाभ सोचना / भाव श्रावक के भावगत 17 लक्षण (गुण) : 1 स्त्री, 2 धन, 3 इन्द्रिय, 4 संसार, 5 विषय, 6 आरंभ, 7 गृह, 0 2728