________________ क्योंकि इसमें हृदय का रोगविह्वलता है, अशान्तता है / धर्मात्मा तो शांत ही शोभायमान होता है / (iv) असभ्य या विकारी वचन नहीं बोलने चाहिए, क्योंकि इससे प्रतिष्ठा हानि या कामराग जाग्रत होता है / (v) बच्चों जैसी चेष्टाए न करना / बालक्रीडा, जुआ, व्यसन, चोपड आदि न आचरना, न खेलना, क्योंकि वे मोह के लक्षण हैं, व अनर्थदडं है / (vi) दूसरों से मधुर वाणी से काम लेना, क्योंकि शुद्ध धर्मवाले को कर्कशवाणी शोभा नहीं देती / ____3. गुणवान बनने के लिए - (i) वैराग्य-वर्धक शास्त्रस्वाध्याय(अध्ययन-चिन्तन-पृच्छा-विचारणादि) में उद्यमी रहना / (ii) तप-नियमवंदन आदि क्रियाओं में उद्यमशील रहना / (iii) बड़ो व गुण-संपन्न आदि का विनय करना (उनके आने पर उठना, सामने जाना, आसन पर बिठाना, कुशल पूछना, विदा करने जाना आदि) (iv) कही भी अभिनिवेश अर्थात् दुराग्रह न रखना / हृदय में शास्त्र के कथन को मिथ्या न मानना / तथा (v) जिनवाणी के श्रवण में सदा तत्पर रहना, क्योंकि इसके बिना सम्यक्त्वरत्न की शुद्धि कैसे होगी? 4. ऋजुव्यवहारी बनने के लिए :- (i) मिथ्या या मिश्रित अथवा विसंवादी (स्वतः विरुद्ध) वचन न बोलना, किन्तु यथार्थ वचन कहना, जिससे श्रोता को भ्रम न हो, अबोधि बीज न हो, और असत् प्रवृत्ति से भववृद्धि न हो / श्रावक के लिए सरल व्यवहारी बनना ही समुचित है / (ii) प्रवृत्ति अथवा व्यवहार दूसरों को ठगने वाला 2 271