Book Title: Jain Dharm Ka Parichay
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 298
________________ गाथा का उच्चारण करते समय मानो कि अपनी बायीं ओर अनंत अतीत तीर्थंकर है / इसी प्रकार दांयी ओर अनंत भावी तीर्थंकर हैं, तथा सामने विहरमान 20 तीर्थंकर समवसरण में अथवा अष्ट प्रातिहार्य सहित विराजमान है ऐसा नजर के सामने लाना / इन्हें मन, वचन, काया से नमस्कार करना / यदि गाथा का अर्थ न आता हो, तो मन में खड़े कोलम में ऊपर से नीचे गाथा की चार पंक्तियाँ लिपिबद्ध दिखायी दें, उन्हें पढना / जैन शासन में ध्यान का महत्त्व इतना अधिक है कि साधु के लिए गुरु से कहा जाता है कि - 'ज्ञान-ध्यान में उजमाळ रहना' / वहाँ 'ध्यान' शब्द से कोई एकान्त में 'ॐ' या 'अहम् इत्यादि का ध्यान लेकर बैठ जाना' यह अभिप्रेत नहीं है, किन्तु 'साधुपन की चर्या व आचार में तन्मय होना' यह अर्थ अभिप्रेत है / वहाँ अल्प समय के लिए भी जो एकाग्र होना है, वह सक्रिय ध्यान रूप हुआ / केवल 'ॐ' या 'अर्हम्' में लम्बे समय तक चित्त एकाग्र रह नहीं सकता / इसलिए ऐसी चेष्टा में स्वयं स्वात्मा के साथ वंचना होती है / क्रिया-चर्या-आचार में तो अल्प अल्प समय के लिए मन स्थिर रह सकता है / जैसे कि - (8) लोगस्स सूत्र में पहली गाथा में अनंत तीर्थंकर पर, उसमें भी भगवान के चक्षु पर मन केन्द्रित किया जाए अथवा ज्ञानातिशय, वचनातिशय आदि पर मन लगाया जाए तो वह ध्यान रूप बनता 8 2938

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