________________ है / अतः उसका स्वरूप प्रगट नहीं हैं / इसके विपरीत एक एक कर्म के कारण इसका विकृत स्वरूप प्रकाश में आता है / उदाहरण के रूप में, - ज्ञानावरण कर्म के कारण जीव में अज्ञान स्वरूप अभिव्यक्त होता है / दर्शनावरण कर्म के फलस्वरूप दर्शनशक्ति क्षीण हो जाने से अन्धता, बधिरता (न सुन सकना) आदि तथा निद्रा प्रगट होती है / आठों कर्मों से भिन्न-भिन्न विकृतियाँ यानी खराबियां उत्पन्न होती है / ___ (1-2) 'ज्ञानावरण' और 'दर्शनावरण' का स्वरुप हम ऊपर देख चुके हैं / अब (3) 'वेदनीय कर्म' की अपेक्षा से विचार करे, वेदनीय कर्म से आत्मा का मूल स्वाधीन और सहज अनंत सुख दबकर कृत्रिम, पराधीन, अस्थिर शाता-अशाता खड़ी होती है / (4) 'मोहनीय कर्म' के आवरण से मिथ्यात्व राग-द्वेष, अव्रत, हास्यादि और काम- क्रोधादि प्रगट हुआ करते हैं / (5) 'आयुष्य कर्म' के उदय से जन्म, जीवन व मरण का अनुभव (6) 'नामकर्म' के कारण शरीर की प्राप्ति से जीव रूपी के समान हो गया है / इस में इन्द्रियाँ, गति, यश, अपयश, सौभाग्य, दौर्भाग्य, त्रसपन, स्थावरपन आदि भाव प्रगट होते हैं /