________________ में ठीक स्थान पर बनाता है / (8) जिन (तीर्थंकर) नामकर्म - जिसके उदय से धर्मशासन की स्थापना करने का अवसर प्राप्त हो / त्रसदशक-स्थावरदशक (कुल 20 प्रकृति-) इसके उदय से जीव को निम्नलिखित की प्राप्त होती है, - (1) त्रस नामकर्म - इससे ऐसा शरीर मिलता है कि जीव धूप आदि में स्वेच्छा पूर्वक खीसक सके, गमनागमन कर सके, व दुःख में कम्प सके / इससे विपरीत स्थावर नामकर्म - जिस के उदय से ऐसा शरीर प्राप्त हो कि जो स्वेच्छा से न हिल सके, न चल सके न कम्प सके / (2) बादर-नामकर्म - इससे ऐसा शरीर प्राप्त हो जिसे न आंखे देख सके / सूक्ष्म-नामकर्म - अनेक शरीर अॅकत्रित होने पर भी देखा जा सके नहीं / (3) पर्याप्त-नामकर्म - जिसके उदय से जीव अपने योग्य पर्याप्ति पूरी करने में समर्थ है / इस से विपरीत अपर्याप्त-नामकर्म / (4) प्रत्येक-नामकर्म - इस से हर एक जीव का पृथक् शरीर मिलता है / इससे विपरीत साधारण-नामकर्म - इससे अंनत जीवों का एक शरीर होता है / (5) स्थिर-नामकर्म - जिस से मस्तक, अस्थियों, दांत, आदि 21260