________________ लक्षणयुक्त, और नीचेका लक्षण हीन / (iii) 'सादि संस्थान':- न्यग्रोध से विपरीत / (iv) 'वामन संस्थान':- मस्तक, गला, हाथ, पैर, ये चारों अवयव लक्षण व प्रमाण वाले हों और छाती, पेट, आदि लक्षण विहीन हों / (v) 'कुब्ज संस्थान':- मस्तक, गला आदि कुरूप हो, तथा छाती, पेट आदि सुरूप हो / ___ (vi) 'हुंडक संस्थान':- सभी अवयव प्रमाण और लक्षणहीन हों / (9 से 12) 4 वर्णादि नामकर्म:- जिन के उदय से वर्ण, रस, गंध, स्पर्श अच्छे या बुरे मिलें / शुभवर्ण-नामकर्म से अच्छे प्राप्त होते हैं और अशुभ से खराब / वर्ण आदि प्रत्येक में अवांतर कई प्रकार है, अतः वे सभी अलग प्रकृति कही जाती हैं / (13) 4 आनुपूर्वी नामकर्म:- नरकानुपूर्वी, तिर्यंचानुपूर्वी, मनुष्यानुपूर्वी तथा देवानुपूर्वी / विग्रहगति से (बीच मे मुड़कर) भवान्तर में जाते हुए जीव को टेढ़े मुडते आकाशप्रदेश की श्रेणी के अनुसार जो वक्रगमन क्रम कराये और खींचकर उस गति में लेजाए उसे आनुपूर्वी नामकर्म कहते हैं / ___(14) 2 विहायोगति नामकर्म:- चाल (चलने की पद्धति) शुभचालहंस, हाथी और बैल के समान / अशुभ-ऊंट, गधे के समान चाल / 2 124