________________ अत्यल्प राग से युक्त चारित्र / (5) यथाख्यात - वीतराग महर्षि का चारित्र / पंचाचार : जैसे साधु-जीवन में अहिंसादि पांच महाव्रतों का पालन यह निवृत्तिमार्ग हैं, वैसे ही ज्ञानादि गुणों की प्राप्ति, रक्षा और वृद्धि के लिए ज्ञानाचार आदि पांच आचारों का पालन यह प्रवृत्ति-मार्ग है | वे हैं-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार व वीर्याचार / इनके आचरण से आत्मा के ज्ञान, दर्शन, चारित्र तपोगुण तथा सत्त्व की पुष्टि-वृद्धि एवं निर्मलता होती हैं / (1) ज्ञानाचार - इसके आठ प्रकार हैं, - (1) काल - दो संध्या, मध्याह्न और मध्य-रात्रि आदि काल यह अस्वाध्याय का समय यानी 'असज्झाय - काल' को छोड़कर योग्य समय में पढ़ना / (2) विनय - गुरु, ज्ञानी, ज्ञान - साधनों का विनय करना / ___ (3) बहुमान - गुरु आदि के प्रति हृदय में अत्यन्त सन्मान रखना / (4) उपधान - सूत्र विशेष पर अधिकार प्राप्त करने के लिए तदनुकूल तप आदि से युक्त उपधान वहन या योगोद्वहन करना / 1058