________________ 7 हाथ की अवगाहना = 7 हाथ का शरीर इन दोनों का 'जीवविचार' तथा 'बृहत्-संग्रहणी' शास्त्र में सविस्तर वर्णन किया गया है / ___कायस्थितिः- जीव बार-बार मरकर सतत वैसी की वैसी ही काया में अधिक से अधिक कितनी बार या कितने काल तक पुनः पुनः जन्म ले सकता है, यह कायस्थिति है / अर्थात् वह कायस्थिति कितनी लम्बी होती है? इसका उत्तर है-स्थावर-अनंतकाय की उत्कृष्ट कायस्थिति अनंत उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल की होती है / अन्य स्थावरकाय की असंख्य उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल की / द्वीन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय की संख्यात वर्ष की / मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच की 7-8 भव / देव और नारक च्यवन कर तत्काल दूसरे भव में देव या नारक नहीं बन सकते / अतः उनकी कायस्थिति एक ही भव की; यानी एक भव के ही आयुष्य काल की होती है | बाद में वे तिर्यंच या मनुष्य भव में ही जाते हैं / ___ योग-उपयोग :- जीव को योग व उपयोग होते है / 'योग' का अर्थ है आत्म-वीर्य की सहायता से मन, वचन, काया का किया जाता प्रवर्तन; वीर्य के सहारे मन-वचन-काया में होनेवाली प्रवृत्ति / 'उपयोग' का आशय है 'ज्ञान व दर्शन का स्फुरण' / इन दोनों का विवेचन आगे किया जाएगा / लेश्या :- जीव की लेश्याएँ छ: होती हैं / 'लेश्या' कर्म या योग के अंतर्गत उस-उस रंग के पुद्गलों की सहायता से उत्पन्न