________________ सारे जगत में उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य की महासत्ता व्यापक है / इस को अगर ध्यान में रखा जाए तब वस्तु के संयोग-वियोग में हर्ष-शोक नहीं होगा / प्र०- सोने के दृष्टांत में कंगन नष्ट हुआ सोना कहाँ नष्ट हुआ है? वैसे ही हार उत्पन्न हुआ, सोना कहाँ उत्पन्न हुआ? तब सोने में उत्पाद - व्यय - ध्रौव्य तीनों कहाँ आये? वैसे ही उत्पादादि तीनों कंगन में कहाँ आये? हार में भी कहाँ आये? उ०- यह तुम्हारा एकांत दर्शन है / अनेकांत दृष्टि से देखो तो तीनों का इस प्रकार समन्वय मिलेगा / सोने को छोडकर कंगन व हार स्वतंत्र नहीं रह सकते हैं किन्तु सोने के रूप में ही रह सकते हैं / अतः कहा जाए कि कंगन का सोना ही सोने के रूप में स्थायी रहकर के कंगन के रूप में नष्ट हुआ, व हार के रूप में उत्पन्न हुआ / सोना द्रव्य है, और कंगन व हार इस के पर्याय है / पर्याय द्रव्य में ही आते जाते हैं / वे द्रव्य को छोड़कर कहीं भी स्वतंत्र रूप में नहीं होते है / वैसे ही गुण भी स्वतंत्र नहीं किन्तु द्रव्याश्रित ही रहते है / वास्ते 'गुण पर्याय युक्तं द्रव्यम्' - 'गुणपर्यायाः नवतत्त्व अनंत जन्म - मरण की परंपरामय एवं दुःखरुप, दुःख- फलक 2 540