________________ आचार-अनुष्ठान जिस धर्म में आदिष्ट हो वह धर्म 'छेद' परीक्षा में उत्तीर्ण माना जाता है, जैसे कि वैदिक धर्म में पहले तो निषेध किया गया कि 'किसी जीव की हिंसा न की जाए / ' किन्तु बाद में अनुष्ठान के रूप में आदेश दिया कि 'पशुओं को मारकर स्वर्ग का अर्थी यज्ञ करे' इस अनुष्ठान को पूर्व 'निषेध' आदेश के अनुरूप नहीं कहा जा सकता / किन्तु जैनधर्म में साधु के लिए कथन है- 'समिति-गुप्ति का पालन करो, अर्थात् इस प्रकार चलो, बोलो, उठो, बैठो, भिक्षा लो, जिस में अहिंसा हो, जीव रक्षा हो' | गृहस्थ श्रावक के लिए भी सामायिक, व्रत, नियम, गुरु-भक्ति, देवभक्ति आदि के अनुष्ठान इस प्रकार के बताए गए हैं कि वे विधि-निषेध से विपरीत नहीं है, उनके अनुरुप हैं / (3) ताप-परीक्षा :- जिस में विधि निषेध और आचार-अनुष्ठान युक्तियुक्त बने-उपपन्न बन सके ऐसे ही तत्त्व और सिद्धान्त मान्य हों, यह धर्म ताप परीक्षा में उत्तीर्ण है / ___वेदान्त में तत्त्व यह माना कि- 'विश्व में एकमात्र शुद्ध बुद्ध आत्मा ही तत्त्व है / लेकिन यदि ऐसी बात हो तो विधि-निषेध किस लिए? निषेध हैं कि- 'किसी जीव को मारना नही' यदि आत्मा एक ही है, दूसरी आत्मा ही नहीं है, तो फिर हिंसा किस की? कौन किसे मारता है? FE 430