________________
व्यय के कारण का अभाव होने से मिट्टी के पिण्ड का विनाश नहीं हो सकेगा। यदि उक्त स्थिति में केवल विनाश या व्यय होगा तो सत् के उच्छेद का भी प्रसंग आएगा। मिट्टी के पिण्ड का विनाश होने पर सभी पदार्थों का विनाश नहीं होगा और सत् का उच्छेद होने से चैतन्यादि का भी उच्छेद हो जाएगा। उत्पाद और व्यय के बिना केवल स्थिति मानने पर व्यतिरेक सहित स्थिति रूप अन्वय का अभाव होने. से मिट्टी की स्थिति ही नहीं रहेगी अथवा केवल क्षणिकत्व को प्राप्त हो जाएगा। मिट्टी की स्थिति नहीं होने पर सभी पदार्थों की स्थिति नहीं होगी। क्षणिक नित्यता में बौद्ध सम्मत चित्क्षण भी नित्य हो जाएँगे । अतः पूर्व पूर्व पर्यायों के विनाश, उत्तरोत्तर पर्यायों के उत्पाद तथा अन्वय रूप की स्थिति ( ध्रौव्य) से अविनाभूत त्रैलक्षण्य ही ज्ञेय पदार्थ का स्वरूप है । यही सत् है और सत् ही द्रव्य है । उक्त त्रिलक्षणात्मक पदार्थ या द्रव्य के मानने से वैशेषिक आदि अन्य दर्शनों के समान गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय और अभाव नामक पृथक् पदार्थ मानने की आवश्यकता नहीं रहती है, ये सब द्रव्य की अवस्थाएँ हैं ।
ये उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य द्रव्य में नहीं होते हैं, पर्यायों में होते हैं और पर्याय द्रव्य में स्थित हैं, इसलिए ये सब द्रव्य के ही कहे जाते हैं। 8
जैसे स्कन्ध, मूल, शाखा ये सब वृक्षाश्रित हैं, वृक्ष से भिन्न पदार्थ रूप नहीं हैं, उसी प्रकार पर्यायें द्रव्याश्रित ही हैं, द्रव्य से भिन्न पदार्थ रूप नहीं हैं तथा पर्याय उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप हैं; क्योंकि उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य अंशों के धर्म हैं, अंशी के नहीं हैं। जैसे बीज, अंकुर और वृक्षत्व - ये वृक्ष के अंश हैं। बीज का नाश, अंकुर का उत्पाद और वृक्षत्व का ध्रौव्य तीनों एक साथ होते हैं, अतः नाश बीज पर आश्रित है, उत्पाद अंकुर पर, ध्रौव्य वृक्ष पर । नाश, उत्पाद, ध्रौव्य, बीज, अंकुर ये वृक्षत्व से भिन्न पदार्थ नहीं हैं। इसी तरह बीज अंकुर और वृक्षत्व भी वृक्ष से भिन्न पदार्थ नहीं हैं, ये सब वृक्ष ही हैं । उसीप्रकार नष्ट होता हुआ भाव, उत्पन्न होता हुआ भाव और ध्रौव्य भाव सब द्रव्य के अंश हैं तथा नाश, उत्पाद, ध्रौव्य उन भावों से भिन्न पदार्थ रूप नहीं है और वे भाव भी द्रव्य से भिन्न पदार्थ नहीं हैं, अत: सब एक द्रव्य ही हैं, किन्तु यदि उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, अंशों का न मानकर, द्रव्य का ही माना जाय तो सब गड़बड़ हो जाएगा। उदाहरण के लिए - यदि द्रव्य काही व्यय माना जाये तो सब द्रव्यों का एक ही क्षण में विनाश हो जाने से जगत् द्रव्यशून्य हो जायेगा । यदि द्रव्य का ही उत्पाद माना जाये तो द्रव्य में प्रति समय उत्पाद होने से प्रत्येक उत्पाद एक द्रव्य हो जाएगा और उस तरह द्रव्य अनन्त हो जाएँगे। यदि द्रव्य का ही ध्रौव्य माना जाएगा तो क्रम से होने वाले भावों का अभाव
20 :: जैनदर्शन में नयवाद
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org