Book Title: Jain Darshan ke Navtattva
Author(s): Dharmashilashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ आत्मार्थी गुरुदेव पू० मोहन ऋषिजी म० सा० आचार्य सम्राट् परमपूज्य श्री आनन्द ऋषिजी म० सा० मोहन ऋषिजी आनंद ऋषिजी कारुण्य, वात्सल्य एवं मांगल्य के पावन प्रतीक, 'श्रमण संघ के द्वितीय पट्टधर श्रुतमहोदधि महान् तत्त्ववेत्ता, 'अध्यात्मयोगी' पू० मोहन आचार्य सम्राट परम पूज्य गुरुदेव श्री आनन्द ऋषिजी ऋषिजी म० सा० जिनकी सत् प्रेरणा से म० सा०, जिनके मुखारविन्द से पू० श्री धर्मशीलाजी महासती श्री धर्मशीलाजी म० सा० "नवतत्त्व" म० सा० ने भागवती दीक्षा प्राप्त की तथा जो पर शोध कार्य में संप्रवृत्त हुई। महासतीजी के श्रुत चारित्रमय जीवन के उत्तरोत्तर विकास के सदैव प्रेरक एवं उन्नायक रहे। मातेश्वरी पू० चंदनबालाजी म० सा० आर्जव, मार्दव, सौहार्द एवं आध्यात्मिक स्नेह की दिव्य स्रोतस्विनी , नवकार महामन्त्र की अनन्य आराधिका, सौम्य हृदया, मातेश्वरी,.(प० पूजनीया गुरुणीवर्या की जन्मदात्री) महासती श्री चन्दन बालाजी म० सा०, जो साध्वी वृन्द के लिए सदा मंगलमय संबल रहीं। चन्दन बालाजी श्रमण-संघीय महाराष्ट्र मंत्री गुरुदेव पू० विनय ऋषि जी म० सा० आगम मर्मज्ञ, जैन-जैनेतर शास्त्रों के महान अध्येता, जंगम ग्रंथागार-सदृश, सौम्यचेता महामनीषी पूज्य श्री विनय ऋषि जी म० सा० जो महासती श्री धर्मशीला जी के शोधकार्य में अनवरत सहयोगी रहे। विनय ऋषिजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 482