Book Title: Jain Agam Itihas Evam Sanskriti
Author(s): Rekha Chaturvedi
Publisher: Anamika Publishers and Distributors P L

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ आमुख चित्तभूमि की खेती संस्कृति है। पिछले हज़ारों वर्षों में भारत के मनीषियों के मन-बुद्धिचित्त के क्षितिज पर अनेक प्रकार के विलक्षण इन्द्रधनुषों ने अपनी अभूतपूर्व छटा बिखेरी है। मत-मतान्तरों और धर्मों के उद्गम का इतिहास, आपसी सभ्यता, विकास और वैविध्य के कारण यह सभी मानव-सभ्यता के लिए अत्यन्त उपादेय, अपार तथा अमूल्य धरोहर हैं। इन तथ्यों के क्रमबद्ध ज्ञान को पुस्तक के रूप में लिपिबद्ध करके डा. श्रीमती रेखा चतुर्वेदी ने छात्रों-अध्यापकों-शोधार्थियों-जिज्ञासु धर्मियों और 'अधर्मियों'–सभी पर बड़ा उपकार किया है। जैन तथा हिन्दू दोनों ही ऋषभ देव को पूज्य मानते हैं। जहां एक ओर हिन्दू उन्हें विष्णु का साक्षात अवतार मानते हैं, वहीं जैन-बन्धु उन्हें सादर आदि तीर्थंकर के पद पर आसीन करते हैं। बौधायन धर्मसूत्र के पंचव्रत तथा ब्राह्मणों के संन्यास सम्बन्धी विचार भी लगभग एक से ही हैं। ___ धर्मों के उद्गम के इतिहास से यह भी पता चलता है कि कब, क्यों, कहां और किस प्रकार भारत के ऋषियों की विलक्षण मेधा के 'बोधि-वृक्ष' से नई दिशाओं में नई कोपलें फूटी थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि आदि तीर्थंकर के युग में बौद्धिक चेष्टा का चरम विकास रुक-थम-सा गया था। कर्म-सिद्धान्त की बेल पर एकांगी दृष्टिकोण की छाया के कारण मानव-मेधा की कलिकाएं अनेकान्त की अपनी सहज क्षमता को पूरी तरह प्रस्फुटित करने के लिए अकुला रही थीं। तत्कालीन धर्म आधे मार्ग में रुके-खड़े-से मानव की सनातन आकांक्षा 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' के पूरी तरह न फलने-फूलने के कारण बेचैन थे। पूर्ण सत्य कलुषित हो चले थे। नव-सृजन के भोर का इन्तज़ार था। निम्न वर्ग की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। लेखिका ने वर्णन किया है कि जातक कथा से ज्ञात होता है कि चूहे द्वारा काटकर चिथड़े बनाए गए वस्त्र शूद्रों को दिए जाते थे। बुद्ध देव के नेतृत्व में चल रहे एक साधु समाज के पीछे पांच सौ व्यक्ति जूठन खाने के उद्देश्य से जाते थे। यद्यपि परिवर्तन के द्वारा ऐसी दरिद्रता को समाप्त करने का मार्ग दुर्लभ नहीं था, किन्तु समस्याओं के व्यावहारिक समाधान की दिशा में स्वर मुखर नहीं था। ऐसे कठिन समय में, महावीर और बुद्ध ने मानव के सम्यक उत्थान का प्रयास किया। उन्होंने कठोर तप से नए संस्कारों की भूमि तैयार की, ज्ञान के नए बीज बोए और उन्हें पल्लवित-पुष्पित

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 372