Book Title: Jagat aur Jain Darshan Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad Publisher: Yashovijay Jain Granthmala View full book textPage 8
________________ वदि ३ संवत् १६६४ को प्रातःकाल पांच बजे अपने माता पिता एवं पत्नी को दुःखी अवस्था मे छोड़कर शुभ ध्यान पूर्वक इस असार संसार से चल बसा। काल की विचित्र गति है जो इस संसार मे आया है उसे अवश्य एक न एक दिन इस काल का ग्रास बनना पडता है। अन्त मे श्रीशासनदेव से नन प्रार्थना है कि स्वर्गस्थ आत्मा को शान्ति प्राप्त हो। यह पुस्तक स्वर्गस्थ के स्मरणार्थ इनकी धर्मपत्नी भंवरवाई की आर्थिक सहायता से प्रकाशित कर आप महानुभावों के कर कमलों में समर्पण करते हैं। प्रकाशकPage Navigation
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